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राजेश सरकार
हल्द्वानी : क्या सच, क्या झूठ! इसे पहचान पाएं तो मतदाता आगे सोचें, किसे वोट देना है? यही हकीकत है आज के इस संचार क्रांति के युग की। पहले अखबार, टीवी, टेलीफोन थे तो आज सोशल मीडिया उनसे कहीं आगे निकल गए हैं। अब चुनाव सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर लड़े जाते हैं।

फेसबुक, टि्वटर, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब सदृश्य अनेक सोशल मीडिया के मंच आसानी से उपलब्ध हैं, जिसका उपयोग चुनावों के लिए बेधड़क किया जाने लगा है। अपने प्रचार के साथ-साथ विरोधी राजनीतिक दल या उसके नेता, प्रत्याशी के खिलाफ “कुछ सच, कुछ झूठ’ का सहारा ले अभियान चलाते दिख रहे हैं।

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उत्तराखंड में निकाय चुनाव चल रहे हैं, रक्तबीज की तरह पार्टी और प्रत्याशियों के समर्थक विभिन्न सोशल मीडिया समूह में घुसे हुए हैं तथा अपने निर्धारित प्रचार-दुष्प्रचार अभियान को अंजाम दे रहे हैं।

समूह के एडमिन चाह कर भी उन्हें नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं। इस सोशल मीडिया के मायाजाल में क्या सच है, क्या झूठ है इसका पता लगाने की जिम्मेदारी मतदाताओं पर आ पड़ी है। एक सर्वे में यह बात सामने आयी है कि सोशल मीडिया का सर्वाधिक उपयोग 18 वर्ष से लेकर 45 वर्ष की आयु वर्ग के मतदाता अधिक करते हैं, इसी लिए इस चुनाव में इस वर्ग की पर्याप्त संख्या को देखते हुए उन्हें लक्ष्य बना कर काम किया जा रहा है। पाठक हों या दर्शक उनकी याददाश्त ज्यादा लंबी नहीं रहती। भाग-दौड़ की आधुनिक जीवनशैली में आज की बातों का ज्यादा महत्व है बजाय कल की बातों को तवज्जो देने के।

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इंटरनेट के इस “फास्ट युग” में कुछ भी संभव है। आप और हम पानी को जिस तरह से छान कर या उबालकर पीते हैं, उसी तरह समाचारों को छान कर या उबाल कर ग्रहण करने की आवश्यकता है।

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