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देहरादून/कोटद्वार: उत्तराखंड की शांत वादियों में गूंज रही एक निर्दोष लड़की की चीख अब फैसले की दहलीज पर है। पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक की रहने वाली 22 साल की अंकिता भंडारी हत्याकांड में 30 मई को कोटद्वार की अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट अपना फैसला सुनाने वाली है। पूरा उत्तराखंड, और खासकर एक टूट चुके पिता की आँखें इस फैसले पर टिकी हैं।
अंकिता के पिता वीरेंद्र सिंह भंडारी की आंखों में अब भी वो रात जिंदा है, जब उनकी बेटी को चीला नहर में धक्का देकर मार डाला गया था। वो कहते हैं, “मैं चाहता हूँ कि मेरी बेटी के हत्यारों को फांसी मिले… मैं अपनी आंखों से इंसाफ होता देखना चाहता हूं।”
पुलकित आर्य जिसका नाम किसी वीआईपी परिवार से जोड़ा जा रहा है पर आरोप है कि उसने अंकिता पर गलत काम करने का दबाव बनाया। जब उसने मना किया, तो उसकी जिंदगी ही छीन ली गई। साथ में दो और नाम हैं सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता। तीनों अब कोर्ट के कटघरे में हैं, और पूरे प्रदेश की निगाहें फैसले पर हैं।
सरकार ने मामले की जांच के लिए एसआईटी बनाई। करीब 500 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की गई, 97 गवाहों में से 47 ने कोर्ट में बयान दिया। बहस पूरी हो चुकी है।
लेकिन इस मामले में सवाल सिर्फ हत्या का नहीं है। सवाल ये भी है कि क्या हमारी व्यवस्था इतने समय बाद भी किसी वीआईपी के दबाव से मुक्त होकर न्याय कर पाएगी? क्या बेटी के हत्यारे अपने अंजाम तक पहुँचेंगे या फिर न्याय भी कहीं चीला नहर में डूब जाएगा?
कल, 30 मई को इस पूरे मामले का फैसला आने वाला है। अंकिता नहीं रही, लेकिन उसकी कहानी आज भी चीखती है न्याय चाहिए। बस… न्याय चाहिए।

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