

सड़क हादसे उठा रहे सरकार की व्यवस्था पर सवाल
देहरादून: उत्तराखंड में सड़क हादसों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है, जो प्रदेश की डबल इंजन सरकार के विकास के दावों की सच्चाई को उजागर करता है। राज्य निर्माण के 23 वर्षों में, राज्य की सड़कों पर हुए हादसों में करीब 20,000 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। हालिया घटनाओं ने सरकार और प्रशासन की व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है।
हाल ही में कुमाऊं के अल्मोड़ा जनपद के मरचुला में हुए भीषण बस हादसे में 36 यात्रियों की दर्दनाक मौत हुई थी। अभी इस हादसे का दुख मिटा भी नहीं था कि टनकपुर हाईवे पर एक कार के दुर्घटनाग्रस्त होने से छह लोगों की मौत हो गई, जिसमें दुल्हन के पिता भी शामिल थे। ये हादसे यह साबित करते हैं कि राज्य की सड़कों की स्थिति चिंताजनक है और हादसों की तादाद में कोई कमी नहीं आ रही।

इन घटनाओं के पीछे मुख्य कारण खस्ताहाल सड़कें, ओवरस्पीडिंग, और नशे की हालत बताई जा रही है। आरटीओ विभाग का मुख्य दायित्व है कि वह यातायात की गति पर नियंत्रण रखे, लेकिन अक्सर यह विभाग किसी बड़े हादसे के बाद कुछ दिनों के लिए चेकिंग अभियान चला कर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान लेता है। इसके अलावा, सरकार भी इन हादसों से सबक लेने के बजाय जनता के आक्रोश को शांत करने के लिए मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश देकर और संबंधित अधिकारियों को सस्पेंड कर अपना कर्तव्य निभाने का दिखावा करती है।
सड़कों पर हो रहे हादसों का ग्राफ दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, और यह साबित करता है कि सरकार और संबंधित विभागों को जरूरी कदम उठाने की आवश्यकता है। सिर्फ जांच और अधिकारियों को निलंबित करने से समस्या का समाधान नहीं होगा। सरकार को चाहिए कि वह हादसों के कारणों को समझे और उन्हें रोकने के लिए ठोस योजनाएं बनाए। अन्यथा, इन खस्ताहाल सड़कों पर आम लोग अपनी जान गंवाते रहेंगे।





