भगत को समर्पित सेवाओं का पुरस्कार मिलने की चर्चा तेज
- राजेश सरकार
देहरादून। इन दिनों देश के राजनीतिक हलकों में देश के कुछ राज्यों के राज्यपाल बदले जाने की चर्चा तेज है। इसके साथ ही उत्तराखंड में यह चर्चा भी है कि इनमें से एक राज्यपाल उत्तराखंड की राजनीति का वरिष्ठ चेहरा हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो भगत सिंह कोश्यारी के बाद यह दूसरा चेहरा होगा, जिसे किसी राज्य के राज्यपाल का दायित्व ग्रहण करने का मौका मिलेगा।
भारतीय राजनीति की यह रवायत रही है कि केंद्र की सत्ता में बैठा राजनीतिक दल अपने वरिष्ठ नेताओं को यदि राजनीति की मुख्यधारा में समायोजित नहीं कर पा रही है तो उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाकर अनुग्रहीत कर देती है। इससे उस राजनीतिज्ञ के पार्टी के प्रति समर्पण का उपकार भी चुका दिया जाता है और उस व्यक्ति से जुड़े समर्थक भी पार्टी के प्रति निष्ठावान बन रहते हैं।
उत्तराखंड के जिस नेता के समर्पण का उपकार राज्यपाल बनाकर चुकाने की बात चल रही है, वह नाम बंशीधर भगत का है। भगत उत्तराखंड में पार्टी के वरिष्ठतम नेताओं में से है। उत्तर प्रदेश के जमाने से ही भाजपा के टिकट पर विधायक बनते आ रहे हैं। वर्तमान में नैनीताल जिले की कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। राज्य में कैबिनेट मंत्री के रूप में कई वरिष्ठ पदों को संभाल चुके हैं और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
लेकिन सियासत भी अजीब शह है। इसमें कौन कब अर्श पर हो जाए और कब फर्श पर, कोई बता नहीं सकता। 2022 में धामी सरकार आने के बाद राजनीति का गुणा-भाग कुछ ऐसा ऊपर-नीचे हुआ कि भगत मंत्रिमंडल से बाहर हो गए और तब से अब तक सूबे की राजनीति का यह वरिष्ठतम विधायक एक साधारण विधायक के तौर पर अपनी राजनीतिक यात्रा को जारी रखे हुए है।
इन दो सालों में बीच-बीच में मंत्रिमंडल विस्तार के राजनीतिक शिगूफे उठते रहे और भगत को मंत्री बनाए जाने की बात उठती रही, लेकिन विस्तार के ये शिगूफे पानी के बुलबुले की तरह बैठ भी जाते और इन अढाई सालों में भगत का फिर से मंत्री बनने का सपना अधूरा ही रहा। बीच-बीच में भगत की नाराजगी की खबरें भी उठती रही। हालांकि भगत ने कभी भी अपने मुंह से अपने रोष को जाहिर नहीं किया और पार्टी के निष्ठावान सिपाही की तरह काम करते रहे।
इन दिनों नए राज्यपालों की नियुक्ति की चर्चाओं के साथ एक बार फिर यह बात राजनीतिक फिजा में तैरने लगी है कि भगत के वरिष्ठता और दशकों लंबे राजनीतिक अनुभव को देखते हुए उन्हें भी किसी राज्य के राज्यपाल का पुरस्कार दिया जा सकता है। यदि फिलहाल हवा में तैर रही यह कयासबाजी सच साबित होती है तो यह दूसरा मौका होगा कि उत्तराखंड से कोई व्यक्ति राज्यपाल बनेगा। इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी महाराष्ट्र के राज्यपाल बनाए गए थे।
यद्यपि भगत के मामले में अभी पार्टी के निर्णय और उनकी व्यक्तिगत इच्छा के बीच में भी पेंच फंस सकता है। ऐसा सुना जा रहा है कि भगत अब स्वयं को राजनीति में लंबा खींचने की बजाय अपने पुत्र की राजनीति को आगे बढ़ाना चाहते हैं और उनकी दिली इच्छा है कि अगले एक-दो महीनों में होने जा रहे नगर निकाय चुनावों में उनके बेटे विकास भगत को हल्द्वानी नगर निगम में मेयर पद के लिए पार्टी उम्मीदवार घोषित किया जाए।
वैसे तो ये भी और वो भी, दोनों ही बातें अभी कयासबाजी ही हैं, लेकिन राजनीति में कहा नहीं जा सकता कि ऊँट किस करवट बैठ जाए।