खनन कारोबार में रॉयल्टी का स्कोप 400 करोड़ के सापेक्ष सिर्फ सौ करोड़ की वसूली पर उठ रहे सवाल
देहरादून। उत्तराखंड में खनन कारोबार को निजी हाथों में सौंपने के आरोपों के बीच एक बड़े खेल का खुलासा हुआ है। यह है रॉयल्टी की कम वसूली का। चार सौ करोड़ की कमाई का तर्क देकर विभाग निजी कंपनियो को कारोबार में उतारने को युक्तिसंगत बता रहा है। सवाल यह है कि चार सौ करोड़ का स्कोप था तो अब तक सिर्फ सौ करोड़ की वसूली ही क्यों हो रही थी?
दरअसल, चार मैदानी जिलों हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल और ऊधम सिंह नगर में खनन कारोबारियों से रॉयल्टी वसूलने का काम निजी हाथों में सौंपने की तैयारी है। पहले हैदराबाद की एक कंपनी को 320 करोड़ में ठेका दे दिया गया था।
डील अंतिम चरण में थी कि इसका भेद खुल गया और बैकडोर से निजी कम्पनी को खनन कारोबार में उतारने का आरोप लगाकर खनन ठेकेदारों ने विरोध शुरू कर दिया। इसके बाद शासन ने अपना फैसला तो नहीं बदला, परन्तु इसके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू की। इन चार जिलों में रॉयल्टी वसूलने का टेंडर तीन सौ करोड़ में आमंत्रित किया गया है।
सचिव खनन बीेके संत का कहना है कि पहले हमे इन चारों जिलों सें रॉयल्टी के रूप में सौ करोड़ सें भी कम राजस्व मिलता था। अब हमे कम से कम तीन सौ करोंड़ का राजस्व मिलेगा। टैक्स आदि को मिला दे तो 100 करोड़ का अतिरिक्त राजस्व भी मिलेगा। बीके संत ने खुले तौर पर खनन करोबार में माफिया तत्व के हावी होने की बात तो नहीं स्वीकारी, लेकिन उनके द्वारा शुरू की गई नई कवायद का आशय यह है कि सरकार को अभी तक इन चारों जिलों में तीन सौ करोड़ की राजस्व हानि हो रही थी। खनन विभाग के तर्क को मान ले तो उसे इस हानि का पता था। इसके बावजूद कोई कारवाई नहीं हो रही थी। गौरतलब हैं कि खनन में खेल मुख्य रूप से तीन तरह के होते है। पहला एक ही रवन्ने पर कई कई वाहन से खनन सामग्री की ढुलाई। दूसरा एक वाहन में क्षमता से अधिक खनन सामग्री की ढुलाई और तीसरा आवंटित खनन पट्टों के इर्दगिर्द किसानों की निजी जमीन पर खनन कार्य और इसका अवैध रूप से कारोबार। तर्क यह दिया गया है कि निजी कम्पनी के हाथों में जब रॉयल्टी वसूलने की जिम्मेदारी होगी तो इस अवैध कारोंबार पर नकेल लगेगी।
राजस्व हानि की जिम्मेदारी किसकी
सवाल यह है कि इस अवैध कारोबार में स्थानीय अधिकारियों की मिली भगत की जांच होगी? यदि पिछले
तीन साल के ही कारोबार का हिसाब जोड़ा जाए तो सरकार को एक हजार करोड़ का राजस्व चूना लग चूका है। क्या इसके लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होगी? बगैर राजनीतिक संरक्षण के इतना बड़ा खेल संभव नहीं है। जांच की आंच ऐसे लोगों तक पहुंचेगी ? विभाग के सूत्रों के माने तो संबंधित क्षेत्र में राजस्व वसूली का स्कोप चार सौ करोड़ से कही अधिक है। इस पर विचार होगा?