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समितियों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पदों की नियुक्ति में देरी, सत्तारूढ़ भाजपा में हताशा

राजेश सरकार

देहरादून। प्रदेश की 24 मंडी समितियां पिछले डेढ़ साल से बिना अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के चल रही हैं और इनका कामकाज प्रशासकों के हवाले है। सत्तारूढ़ भाजपा के नेता-कार्यकर्ता हर शहर में इन पदों पर मनोनयन की उम्मीद लगाए बैठे हैं, ताकि वे इन सम्मानजनक पदों पर आकर कार्य कर सकें। हालांकि, मंत्रिमंडल विस्तार की तरह सरकार की मंशा इस दिशा में भी देरी का शिकार हो रही है।
प्रदेश में कुल 24 मंडी समितियां हैं, जिनमें से 20 सक्रिय हैं और चार अस्तित्वहीन हैं। सामान्यत: इन समितियों में किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य होने चाहिए थे, लेकिन पिछले कुछ दशकों से सरकारें इन समितियों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पदों पर पार्टी के पदाधिकारियों को नियुक्त करती आ रही हैं। भाजपा सरकार ने अक्टूबर 2021 में राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन (प्रोत्साहन एवं सुविधा) अधिनियम लाकर इन समितियों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पदों पर मनोनयन किया था।
इस अधिनियम में प्रावधान है कि चुनाव होने तक या अधिकतम दो वर्ष तक सरकार मंडी समितियों के अध्यक्ष और उपाध्यक्षों को मनोनित कर सकती है। इस प्रावधान के तहत किए गए मनोनयन का कार्यकाल सितंबर 2023 में समाप्त हो चुका है। इसके बावजूद सरकार ने इन पदों पर पुनः नियुक्ति की कोई पहल नहीं की और इन समितियों का प्रशासनिक व वित्तीय कामकाज सरकारी अधिकारियों के हाथ में है।
हालांकि मंडियां पूर्ववत काम कर रही हैं, लेकिन किसानों और व्यापारियों को अपनी समस्याएं जनप्रतिनिधियों के सामने रखने में कठिनाई हो रही है, क्योंकि वे सरकारी अधिकारियों से इन मुद्दों पर बात करने में संकोच करते हैं। इसके परिणामस्वरूप कई समस्याएं हल नहीं हो पातीं। साथ ही, चूंकि प्रशासक के तौर पर कामकाज संभाल रहे सरकारी अधिकारी इसे अपनी मुख्य जिम्मेदारी के अलावा देख रहे हैं, इसलिए वे इस पर पर्याप्त समय और ध्यान नहीं दे पा रहे हैं।
इस देरी के चलते एक भाजपा नेता ने अपनी मन की टीस इस प्रकार व्यक्त की, “क्या बताएं, हमारी सरकार हर चीज में लेटलतीफी करती है। मंत्रिमंडल विस्तार नहीं हो पा रहा है, और अब मंडी समितियों की स्थिति भी यही है। हालांकि मामला पार्टी अनुशासन से जुड़ा है, इसलिए खुलकर कुछ नहीं कह सकते, लेकिन आप मेरा नाम मत छापिए।”
यह स्थिति मंडी समितियों के सही संचालन और किसानों और व्यापारियों के हित में निराकरण के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है।

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मंडी समितियों को जल्द मिलेंगे अध्यक्ष: कृषि मंत्री

पिछले डेढ़ साल से अध्यक्षों से विहीन चल रही मंडी समितियों को अब जल्द ही अध्यक्ष पदों का तोहफा मिलने जा रहा है। कृषि मंत्री गणेश जोशी ने बताया कि वर्तमान में विधानसभा बजट सत्र चल रहा है और उसकी समाप्ति के साथ ही मुख्यमंत्री की तरफ से दायित्वों का आवंटन कर दिया जाएगा। श्री जोशी ने कहा कि मंडी समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति शीघ्र कर दी जाएगी, जिससे समितियों का प्रशासनिक और वित्तीय कार्य सुचारु रूप से चल सकेगा।

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प्रदेश की चार मंडियां क्यों हैं अस्तित्वविहीन?

प्रदेश में वर्तमान में 24 मंडी समितियां हैं, लेकिन इनमें से चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और अल्मोड़ा मंडी समितियां अस्तित्व में आने के बावजूद वर्तमान समय में अस्तित्वविहीन हैं। इन मंडियों के अस्तित्व विहीन होने के पीछे मुख्य कारण इनका सही से संचालन न हो पाना है। इन मंडियों में आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी, संसाधनों की अभाव और सही प्रबंधन की न होने के कारण इनका कार्य सुचारू रूप से नहीं हो पा रहा है, जिसके चलते इनकी स्थिति अस्तित्वविहीन हो गई है।

यूपी में अध्यक्ष के स्थान पर प्रशासक की है व्यवस्था

उत्तर प्रदेश में मंडी समितियों में अध्यक्ष बनाए जाने का रिवाज नहीं है। वहां पर अध्यक्ष के बजाय किसी पीसीएस (पब्लिक सिविल सर्विस) स्तर के अधिकारी को प्रशासक नियुक्त किया जाता है। इस व्यवस्था के तहत, मंडी समितियों का संचालन प्रशासक द्वारा किया जाता है, जो इन समितियों के प्रशासनिक और वित्तीय कार्यों की देखरेख करता है। यह तरीका प्रदेश की प्रशासनिक प्रणाली के अनुरूप है, जहां प्रशासकों द्वारा कार्यों को सुचारू रूप से चलाया जाता है।

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