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विनोद कुमार सुमन का हुआ केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव के पद पर चयन

  • राजेश सरकार

देहरादून/ हल्द्वानी: “मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है” यह कहावत उत्तराखंड के आईएएस अधिकारी विनोद कुमार सुमन पर एकदम सटीक बैठती है।
वर्ष 2007 बैच के आईएएस अधिकारी विनोद कुमार सुमन वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास, राज्य संपत्ति, सामान्य प्रशासन, और प्रोटोकॉल जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं। उनके द्वारा दी गई सेवाएं राज्य में विकास के महत्वपूर्ण पहलुओं में गिनी जाती हैं। इससे पहले, उन्होंने सचिव वित्त, सचिव शहरी विकास, सचिव सहकारिता, सचिव कृषि, और सचिव पशुपालन के रूप में भी अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दी हैं।
अभी हाल ही में, विनोद कुमार सुमन का केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव के पद पर चयन हुआ है। वे राज्य गठन के बाद पहले आईएएस अधिकारी हैं जिनका केंद्र सरकार के लिए मनोनयन हुआ है। यह उनके कठिन संघर्ष और प्रशासनिक दक्षता का प्रमाण है।
सुमन राज्य गठन के बाद से शहरी विकास विभाग में सबसे लंबे समय तक निदेशक के पद पर कार्यरत रहे हैं। इसके अलावा, वे चमोली, अल्मोड़ा, और नैनीताल जैसे प्रमुख जिलों के जिलाधिकारी (डीएम) रह चुके हैं। उन्होंने उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में लंबे समय तक सिटी मजिस्ट्रेट और अपर जिलाधिकारी का पदभार भी संभाला था। इसके अलावा, वे सचिव एमडीडीएम भी रहे।
गौरतलब है कि विनोद कुमार सुमन का जन्म उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के खांऊ गांव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी, लेकिन उन्होंने कभी भी परिस्थितियों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने अपने गांव से प्राप्त की। पांच भाई और दो बहनों में सबसे बड़े विनोद ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ घर की जिम्मेदारियां भी निभाईं।
जब विनोद कुमार सुमन का इंटरमीडिएट पास करने के बाद आगे की पढ़ाई जारी रखने का सवाल आया, तो उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और श्रीनगर गढ़वाल पहुंचे, जहां उनके पास खाने तक के पैसे नहीं थे। हालात के बावजूद, उन्होंने वहां एक निर्माण स्थल पर मजदूरी करना शुरू किया, और उस समय उन्हें रोज़ 25 रुपये मिलते थे। वे कई महीनों तक मंदिर के बरामदे में चादर और बोरे के सहारे सोते रहे, लेकिन पढ़ाई में उनका जुनून कभी कम नहीं हुआ।
कुछ महीनों बाद उन्होंने श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय में बीए में दाखिला लिया। उनकी गणित में अच्छी पकड़ थी, इसलिए उन्होंने रात में ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और दिन में मजदूरी की। उन्होंने 1992 में फर्स्ट डिवीजन से बीए किया और फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास में एमए किया। इसके बाद, 1995 में उन्होंने लोक प्रशासन में डिप्लोमा किया और प्रशासनिक सेवा की तैयारी में जुट गए।
इस दौरान, महालेखाकार ऑफिस में लेखाकार के पद पर उनकी नियुक्ति हुई, लेकिन उनका लक्ष्य साफ था। उन्होंने 1997 में पीसीएस की परीक्षा दी और 1998 बैच में उनका चयन हुआ। इसके बाद, उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और राज्य गठन के बाद उत्तराखंड कैडर को चुना। इसके बाद उन्हें 2007 में आईएएस कैडर मिला, और उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।
विनोद कुमार सुमन की यात्रा यह साबित करती है कि मेहनत, संघर्ष और जुनून के साथ कोई भी मुश्किलें पार की जा सकती हैं। विनोद कुमार सुमन जैसे अधिकारी न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हैं। कुल मिलाकर विनोद कुमार सुमन की यह प्रेरणादायक कहानी यह सिखाती है कि अगर व्यक्ति के अंदर मेहनत और दृढ़ नायकत्व की ताकत हो, तो कोई भी मुश्किल राह आसान हो सकती है।

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