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हल्द्वानी: शिक्षा का क्षेत्र आजकल एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा बन चुका है, खासकर जब बात आती है प्राइवेट स्कूलों की मनमानी और शिक्षा विभाग की उदासीनता की। अभिभावक अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए जब उच्च गुणवत्ता वाले इंग्लिश मीडियम स्कूलों की ओर रुख करते हैं, तो उन्हें न केवल शिक्षा की गुणवत्ता बल्कि भारी शुल्क, किताबों की खरीदारी और अन्य अतिरिक्त खर्चों का सामना भी करना पड़ता है। यह स्थिति न केवल परिवारों के लिए आर्थिक संकट पैदा करती है, बल्कि मानसिक उत्पीड़न का कारण भी बनती है। निजी स्कूलों द्वारा हर साल किताबों का बदलाव और फीस वसूली के नाम पर वसूली एक आम समस्या बन चुकी है। कुछ स्कूल हर साल पाठ्यक्रम में बदलाव कर देते हैं, जिससे अभिभावकों को नई किताबें खरीदनी पड़ती हैं, और साथ ही एडमिशन फीस, डोनेशन, जनरेटर चार्ज, भवन शुल्क जैसी नामों पर भारी भरकम राशि वसूली जाती है। इस अनियमितता के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई न होना शिक्षा विभाग की कमजोरी को उजागर करता है।
हालांकि, शिक्षा विभाग के अधिकारी अक्सर चेतावनी देते हैं कि यदि किसी स्कूल ने कापी, किताबों या अन्य वस्तुओं के नाम पर पैसे लेने की कोशिश की, तो स्कूल की मान्यता रद्द कर दी जाएगी, लेकिन यह बयान अक्सर कागजों तक सीमित रह जाता है। जब स्कूल संचालक विभाग के अधिकारियों के सामने अपनी ताकत दिखाते हैं, तो शिक्षा विभाग का रवैया केवल शब्दों तक ही सिमट कर रह जाता है।
यहां बता दे कि निजी स्कूलों के साथ-साथ कोचिंग सेंटरों का खेल भी किसी से छिपा नहीं है। छात्रों को पास करने का झांसा देकर उनसे मोटी फीस वसूल की जाती है। एक विद्यार्थी से प्रति विषय 500 से 1000 रुपये तक लिया जाता है। ये कोचिंग सेंटर अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए छात्रों को मानसिक रूप से दबाव में डालते हैं, जिससे अभिभावक अपनी पूरी वित्तीय स्थिति को निचोड़कर इन फीसों को चुकता करने के लिए मजबूर होते हैं। इस पूरे परिपेक्ष्य में शिक्षा विभाग की निष्क्रियता सबसे बड़ी समस्या है। विभाग की तरफ से दी गई चेतावनियों का कोई असर नहीं दिखता, क्योंकि वास्तविक कार्रवाई की कोई संभावना नहीं होती। अभिभावक भी इस डर से कोई कदम नहीं उठा पाते कि कहीं उनके बच्चों का भविष्य खतरे में न पड़ जाए। यह समस्या केवल हल्द्वानी या उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देशभर में व्याप्त है। अगर शिक्षा विभाग सचमुच शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाना चाहता है और अभिभावकों को उनके बच्चों के भविष्य को लेकर मानसिक शांति देना चाहता है, तो उसे प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर कड़ी और तत्काल कार्रवाई करनी होगी। इसके साथ ही, सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने की दिशा में भी कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि अभिभावकों के पास एक अच्छा और सशक्त विकल्प हो, जिससे वे अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित महसूस कर सकें।