

राजस्व भूमि की आड़ में आरक्षित वन क्षेत्र का सौदा, वन विभाग बना मूक दर्शक, पर्यटन के नाम पर जंगलों की नीलामी
कालाढूंगी : बाजार की मंदी ने ‘बाय वन, गेट वन फ्री’ जैसे जुमलों को फिर से चर्चाओं में ला दिया है। अब यह ऑफर मोबाइल, कपड़ों या किराने की दुकानों तक सीमित नहीं, बल्कि उत्तराखंड के जंगलों तक पहुँच चुका है। भू-माफिया खुलेआम सोशल मीडिया पर यह प्रचारित कर रहे हैं कि जितनी राजस्व भूमि आप खरीदेंगे, उतनी ही वन भूमि मुफ्त में मिलेगी।
राजस्व भूमि से सटी आरक्षित वन भूमि को सौदे में जोड़ने का यह खेल नैनीताल जिले के कालाढूंगी तहसील के चुनाखान क्षेत्र में खुलकर सामने आया है। भू-माफिया राजस्व ज़मीन के नाम पर रजिस्ट्री करवाते हैं, और साथ में वन भूमि पर भी कब्ज़ा दिला देते है एक बाउंड्रीवाल, एक स्वीमिंग पूल, और तैयार है रिसोर्ट। पूरा प्रकरण तब सामने आया जब हल्द्वानी के पवन गुप्ता ने कथित रूप से 6 बीघा राजस्व भूमि के साथ 6 बीघा आरक्षित वन भूमि भी हल्द्वानी निवासी प्रेमा देवी और हरजीत कौर को बेच दी। यही भूमि पहले वह हल्द्वानी निवासी कौशल अग्रवाल उर्फ रिंकू नामक व्यक्ति को भी बेच चुका था। जब रिंकू को खबर लगी, तो मामला कालाढूंगी
थाने पहुँचा और पुलिस केस दर्ज हुआ। फोरेस्ट की जमीन पर काम शुरू हो चुका था बाउंड्रीवाल उठ रही थी, प्लानिंग पूरी थी। लेकिन वन चौकी से चंद कदम की दूरी पर हो रहे इस निर्माण की भनक न तो विभाग को लगी, न ही किसी ने रोका। जब खबर अखबार में छपी, तब रेंजर नवल किशोर कपिल मौके पर पहुँचे और कार्य रुकवाया गया।
राजस्व व वन विभाग ने संयुक्त सर्वे की योजना बनाई लेकिन सर्वे भी भारतीय व्यवस्था का शिकार हो गया। महीनों बाद भी नतीजा अधूरा। सर्वे के दौरान पता चला कि अन्य हिस्सों पर भी कब्जा हो चुका है कहीं खेती, कहीं बागवानी, और कहीं रिसोर्ट का निर्माण किया जा रहा है। फोरेस्ट की लैंड पर वन विभाग ने चेतावनी बोर्ड लगाया कि यह भूमि आरक्षित वन क्षेत्र है पर भू-माफिया ने वो बोर्ड उखाड़ फेंका, और अधिकारियों को कानों कान खबर नहीं हुई। बोर्ड वन चौकी के सामने लगा था लेकिन नज़रें वहीं फेर ली गईं। कुल मिलाकर उत्तराखंड के जंगलों में हो रही यह खुली लूट एक उदाहरण नहीं, एक चेतावनी है। आज अगर चुप रहे, तो कल केवल बोर्ड रह जाएंगे जंगल नहीं।
डीएफओ बोले: कार्रवाई होगी, पर कब?
रामनगर के डीएफओ प्रकाश आर्य ने कहा कि संयुक्त सर्वे अधूरा रहा, अब नए एसडीएम और तहसीलदार से मीटिंग होगी। उन्होंने कहा कि वन विभाग का बोर्ड हटाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई निश्चित होगी, लेकिन कब ये शायद किसी अगले ट्रांसफर के बाद ही तय होगा।