

80-90 के दशक की गैंगस्टर पॉलिटिक्स और क्राइम नेटवर्क का काला सच
हल्द्वानी: जब एक राज्य, उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड बनने का सपना देख रहा था, तब हल्द्वानी की गलियों में डर घूमता था। दंगों की खबरें, खून की बारिश और अंधेरे में पलती माफियाओं की फौज। विकास के नाम पर गौलानदी की रेत को नोचा जा रहा था और उसी रेत में से निकला एक नाम रमेश बंबइयां।
“जिसने मुंबई से सीखा दांव, और हल्द्वानी में खड़ा किया अपराध का साम्राज्य”
रानीखेत से ताल्लुक रखने वाला रमेश चिलवाल, जिसे लोग ‘बंबईया’ कहने लगे थे, उसका अपराध की ओर पहला झुकाव मुंबई में हुआ। पिता अस्पताल में काम करते थे, पर बेटा अस्पतालों में नहीं, अपराधियों की गलियों में वक्त बिताता था। वहीं से आया जुर्म का पहला पाठ।
हल्द्वानी लौटकर ऑटो चलाने वाला रमेश, जल्द ही खनन की ओर मुड़ा। गौलानदी की रेत में उसे सोना नजर आया। अवैध खनन से पैसा आया, और फिर शराब के धंधे में कूद गया।
“हरदोई से शराब, पहाड़ों में सप्लाई जब कानून की आंखों में धूल झोंकी गई”
उस दौर में पर्वतीय क्षेत्रों में शराब बिक्री पर पाबंदी थी, लेकिन रमेश बंबइयां ने पाबंदियों को नज़रअंदाज़ अवैध शराब की तस्करी शुरू की। देशी शराब की गाड़ियां हरदोई से आतीं और पहाड़ों में चढ़ जातीं। इस धंधे में रमेश अकेला नहीं था, लेकिन सबसे चालाक था।
“जब पोंटी चड्ढा से हुई भिड़ंत और हल्द्वानी का ‘सरगना’ बन गया बंबइयां”
शराब के कारोबार में उसका सामना हुआ नामी कारोबारी चड्डा बंधुओं से। लेकिन बंबइयां ने अपनी पकड़ से उन्हें भी कड़ी टक्कर दी। देखते ही देखते वह कुमाऊं का सबसे बड़ा डॉन बन गया।
“गैंगवॉर, गोलियां, और हत्या, खून की कहानियों से लिखी गई बंबईया की सत्ता”
कई हत्याओं के आरोप लगे। कई बार जानलेवा हमले हुए, लेकिन हर बार रमेश बच निकलता। फिर उसकी टक्कर हुई एक और नाम से प्रकाश पांडे उर्फ पीपी।
खनन, शराब और लीसा की दुनिया में दोनों का टकराव आम हो गया। लेकिन सबसे बड़ा झटका तब लगा जब खनन का टेंडर रमेश के हाथ से निकलकर जोशी बंधुओं के पास गया।
“जोशी बंधुओं से दुश्मनी और खौफनाक अंत की शुरुआत”
पहले पवन जोशी की हत्या हुई, फिर उसके भाई विनीत को खुलेआम गोली मारकर बंबइयां ने हल्द्वानी को हिला दिया। इस हत्याकांड के बाद शहर सड़कों पर उतर आया, पुलिस पर दबाव पड़ा और आखिरकार रमेश बंबइयां गिरफ्तार हुआ।
“अदालत से उम्रकैद और जेल में बीमारी से मौत खत्म हुई एक दहशत की कहानी”
करीब आठ साल की सजा काटने के बाद बीमारी के चलते रमेश की मौत हो गई। एक ऐसा अंत, जिसे शायद उसने खुद भी नहीं सोचा था। लेकिन उसके जाने से कुमाऊं में एक लंबे वक्त तक बनी रही दहशत की दीवार आखिरकार गिर गई। “अब सवाल य़ह उठता है कि जब कानून हाशिये पर होता है, तब अपराध केंद्र में आ जाता है।” और ये कहानी सिर्फ रमेश बंबइयां की नहीं, बल्कि उस दौर की है जब विकास की आड़ में व्यवस्था खोखली हो चुकी थी। कैसे एक ऑटो चालक बन गया कुमाऊं का डॉन, और कैसे जुर्म की चमक अंत में अंधेरे में बदल जाती है।
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