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राजेश सरकार
हल्द्वानी। अब डाक्टरों के लिए अपने पसंद की ब्रांड दवाएं लिखना भारी पढ़ जाएगा। अब डाक्टरों को पर्चे में दवा के नाम के साथ उसका साल्ट भी लिखना पड़ेगा। अगर ऐसा हुआ तो डाक्टरों के क्लिनिको में चलने वाले मेडिकल स्टोरों में संकट के बादल आ जाएंगे क्योंकि मरीज़ अपनी पसंद के मेडिकल स्टोर से दवाएं खरीदना शुरु कर देगा। नए आदेश से एक फर्क य़ह भी पड़ेगा कि कंपनिया जो महंगे गिफ्ट दवाएं लिखने के लिए डाक्टरों को देती है वो अब नहीं दे पाएँगी, क्योंकि मरीज़ अपनी पसंद की दवाएं लेंगे और जेनरिक कंपनियों का लाभ सीधे ग्राहक को मिलेगा।
जेनरिक में जो टेबलेट 3 से पांच रुपये की मिल सकती है, वही दवाएं कम्पनी ब्रांड के नाम से 20 से 25 रुपये की मिल रही है। लोगों को इसके लिए कई गुना पैसे खर्च करने पड़ रहे है। जेनरिक मेडिसिन को लेकर 2016 में कानून भी बनाया गया था, इस कानून के तहत डाक्टर जेनरिक दवाईयां लेने की सलाह देंगे। अधिकतर डाक्टर दवाईयो का ब्रांड लिख रहे हैं। इससे महंगी दवाएं मिल रही है। इस कारण डाक्टर जेनरिक दवाएं लिखने को तैयार नहीं है। इसके पीछे एक बड़ा कारण य़ह भी है कि डाक्टरों को ब्रांडेड कंपनियों की तरफ से महंगे गिफ्ट मिलते है और कमिशन भी आकर्षक होता है। यही कारण है कि प्रधानमन्त्री जन औषधि केंद्र में मिलने वालीं दावाओं के बारे में इनकी सोच भी नेगेटिव रहती है और मरीजों को उसी तरह का फ़ीड भी करते है। एक बड़ा कारण य़ह भी है कि जो डाक्टर दवा लिखता है वो उसके सेटिंग वाले मेडिकल स्टोर पर ही मिलती है। इस कारण कम्पनियां दवाओं की एमआरपी भी मनमाना लिखती है।
नाम न छापने की शर्त में एक मेडिकल स्टोर संचालक का कहना था कि काफी समय से य़ह मांग उठ रही है थी कि डाक्टर जेनरिक दवाएं लिखे, लेकिन सरकार के आदेश को डाक्टर मानने को तैयार नहीं थे। अब साल्ट लिखने से कंपनियां एमआरपी भी कम करेंगी और डाक्टरों को महंगे गिफ्ट देने में कंपनियों को होने वाले खर्च में कटौती भी होगी। यह गरीब और मध्यम वर्ग के मरीजों के लिये काफी लाभकारी भी होगा। अब मरीज जहां मन करेगा साल्ट देखकर मेडिकल स्टोर से दवाएं लेगा। इस बाबत कई लोगों का तो य़ह भी कहना था कि जेनेरिक दवाओं को लेकर भ्रम फैलाया जाता है कि दवाएं कम असर करती हैं, लेकिन डाक्टर जब परचे में साल्ट लिखेंगे तब मरीजों के सामने विकल्प रहेगा कि वो ब्रांडेड दवाएं ले या फिर जेनेरिक। इससे सीधे तौर पर मरीज को फायदा रहेगा। सरकारे पिछले कई वर्षो से य़ह कहती आ रही है कि चिकित्सक जेनेरिक दवाएं लिखे। हालात यह हैं कि कुछ नामी डाक्टर ब्रांडेड दवाएं लिखने से बाज नहीं आ रहे हैं।

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जेनेरिक दवाओं और ब्रांडेड में अंतर

किसी बीमारी की दवा एक तरह का केमिकल सॉल्ट होता है। जेनेरिक दवा जिस सॉल्ट से बनी होती है, उसके नाम से जानी जाती है। कंपनी जब इसे अपना नाम देती हैं, तो यह ब्रांडेड हो जाती है। जैसे दर्द या बुखार में काम आने वाली दवा में पैरासिटामोल सॉल्ट होता है, लेकिन जब इसे कोई ब्रांड बनाता है, तो उसे अपना नाम दे देता है। जहां सर्दी, खांसी, बुखार जैसी बीमारियों की जेनेरिक दवाएं 1- 2 रुपये प्रति टेबलेट में उपलब्ध होती हैं, तो वहीं, ब्रांडेड के लिए ग्राहकों को इनकी कीमत कई गुना तक देनी पड़ती है।

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