1725 गांव हो चुके है अब तक पूरी तरह खाली
हल्द्वानी। उत्तराखंड राज्य अपने 24 साल की युवा अवस्था में पहुंच चुका है। जन्म से युवा अवस्था तक पहुंचने के राज्य के इस सफर पर नजर डालें तो उल्लास की बजाय निराशा अधिक हाथ लगती है। जिस पहाड़ के विकास की मांग को लेकर राज्य अस्तित्व में आया उसके विकास को लेकर ठोस योजनाएं ही नहीं बन पायी और जो बनी वह भी सही तरीके से परवान नहीं चढ़ सकीं, नतीज़ा पलायन का दौर थमने की बजाय और तेज हो गया। पलायन आयोग के आंकड़े पहाड़ की भयावह तस्वीर दिखा रहे है। आयोग की 2022 की रिपोर्ट दर्शाती है कि राज्य के कुल 1725 गांव आंशिक या पूरी तरह से खाली हो चुके है।
लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बेहतर जीवन-स्तर की तलाश में लगातार पहाड़ों से मैदान की ओर पलायन कर रहे हैं। पलायन आयोग की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 2018 से 2022 के बीच 24 नए गांव पूरी तरह से खाली हो चुके हैं। 2011 से 2018 के बीच 734 गांव आंशिक या पूरी तरह से खाली हुए थे, जबकि 2022 की रिपोर्ट बताती है कि कुल 968 गांव अब तक निर्जन हो चुके हैं। इस प्रकार राज्य में कुल 1726 गांव आंशिक या पूरी तरह से खाली हो चुके हैं। अगर पलायन के परिपेक्ष्य में देखे तो उत्तराखंड में पलायन के प्रमुख कारणों में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, रोजगार के अवसरों का अभाव और कठिन भौगोलिक स्थितियां शामिल हैं। राज्य के कई दूर-दराज के गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं हैं और बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा की सुविधाएं भी नहीं हैं। रोजगार के अवसरों के अभाव में युवा वर्ग शहरों और अन्य राज्यों में नौकरी की तलाश में जा रहे है। पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार यदि इन बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं किया गया तो पहाड़ों में लगातार गांव खाली होने का सिलसिला जारी रहेगा। लगातार हो रहे पलायन को लेकर पलायन आयोग की 2022 की रिपोर्ट दर्शाती है कि उत्तराखंड में पलायन का प्रभाव गहराई से महसूस किया जा रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार अब तक 307310 लोग उत्तराखंड से पलायन कर चुके हैं, जिनमें से 28531 लोग स्थायी रूप से राज्य छोड़ चुके हैं। जानकारों का मानना है कि यदि उत्तराखंड सरकार गांवों में रोजगार के अवसर बढ़ाए और शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करे तो पलायन को रोका जा सकता है। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर सामुदायिक विकास कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करना भी एक कारगर उपाय साबित हो सकता है। और उत्तराखंड के विरान हो चुके गांव में फिर से रोनक वापस लौट सकती है।