ब्यूरों रिपोर्ट
हल्द्वानी। महज हज़ार 500 रुपये के लालच में मरीजों को कई बार झोलाझाप डाक्टरों के महंगे इलाज हैं गुलजार की दलदल में फंसा देते हैं, जब तक मरीज और उसके तीमारदार हकीकत से रूबरू होते हैं तब तक काफी देर हो चुकी होती है। या तो मरीज की जान चली जाती है या फिर उसका केस बुरी तरह बिगड़ चुका होता है। कुमाऊँ के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले हल्द्वानी शहर में केवल स्थानीय मरीज ही नहीं आते। यहां बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश और पर्वतीय क्षेत्रों के दूरदराज के इलाकों के अलावा कई बार दूसरे राज्यों के भी मरीज आते हैं। मरीज आमतौर पर एम्बुलेंस में लाए जाते हैं। ऐसे ही मरीजों की तलाश प्राइवेट अस्पतालों या कहें नर्सिंग होम संचालाकों के दलालो को रहती है। बाहर से मरीज आने की खबर मरीज के मेडिकल पहुचने से पहले दलाल को लग जाती है। और यह काम उस एम्बुलेंस का चालक करता है जिसकी एम्बुलेंस में मरीज को लाया जा रहा होता है। जानकारों की मानें तो दरअसल प्राइवेट अस्पतालों के दलालों का कनेक्शन बाहर से मरीजों को लाने वाली एम्बुलेंसों से होता है। मरीजों के साथ जो ये खेल होता है उसके लिए मेडिकल का चिकित्सा सिस्टम भी कम कसूरवार नहीं है। दरअसल, होता यह है कि मेडिकल इमरजेंसी में जब भी कोई मरीज दूरदराज से लाया जाता है तो लापरवाही के चलते उसको एडमिट करने में कई बार देरी होती है। इमरजेंसी में वही मरीज लाया जाता है जिसकी हालत नाजुक होती है। ऐसे मरीज के परिजन पूरी घबराहट में होते हैं। उनकी इसी घबराहट और मरीज की नाजुक दिशा का फायदा प्राइवेट नर्सिंगहोमों के दलाल उठाते हैं। होता यह है कि बाहरी मरीज के मेडिकल पहुंचते ही दलाल उस पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर देते हैं। सरकारी इलाज की तमाम खामियां गिनाते हुए मरीज के परिजनों को समझाते हैं कि शहर में कई ऐसे नर्सिंगहोम है जहां मेडिकल से भी सस्ता और अच्छा इलाज मिल जाएगा। घबराहट में लोग इनके झांसे में आ जाते हैं। इसी बीच ये मरीज को उठाकर अपनी एम्बुलेंस में डाल लेते हैं सीधे पहुंच जाते हैं। उस नर्सिंगहोम जहां से मरीज लाने की एवज में हजार या 500 रुपये मात्र कमिशन के रूप मे मिलते हैं।
दलाल बन गए संविदा स्टाफ
सूत्र बताते है कि एसटीच की इमरजेंसी के बाहर कभी मरीजों को पहुंचाने की दलाली करने वाले दो लोग जिनमें से एक अपनी एम्बुलेंस चलाता है दलाली करते मेडिकल में संविदा पर नौकरी पाने में सफल हो गए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मेडिकल इमरजेंसी से मरीजों को उठाकर ले जाने वालों के कनेक्शन या पहुंच कितनी ऊपर तक है। इनकी पहुंच की बात की जाए तो यहां तक दावा किया जाता है कि ये मेदांता तक मरीज पहुंचा देते हैं।
नौकरी के साथ साईड बिजनैस भी
कर्मचारी के बारे में सुनने में आया है कि ड्यूटी के साथ साथ वह जिस एम्बुलेंस में कभी मरीजा को ढोता था, उसी एम्बुलेंस में अब मेडिकल व चिकित्सा संबंधित सामान लेकर आता है। दिन भर उसकी एम्बुलेंस चिकित्सकीय सामान से भरी मेडिकल परिसर में खड़ी रहती है। नौकरी के करने के साथ साथ वह मरीजों को सामान व दवाएं आदि भी बेचता है। इस पूरे खेल में स्टाफ के लोगों की पूरी मिली भगत होती है। उनके बगैर यह संभव नहीं। इसकी सीधी चोट मरीज व उसके तीमारदारों पर पड़ती है।
इमरजेंसी में सुरक्षा के है पुख्ता इंतजाम
मेडिकल प्राचार्य डा. अरुण जोशी का कहना है कि इमरजेंसी में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम है। आउटर की वहां एंट्री नहीं, यदि तीमारदार ही खुद मरीज को डिस्चार्ज कराना चाहते हैं तो उन्हें रोका नहीं जा सकता है।
क्रमश