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देहरादून: जब आप अगली बार देवप्रयाग की घाटियों में खड़े होकर पहाड़ों की खामोशी को सुनेंगे, तो जान लीजिए कि अब इस खामोशी के नीचे 14.58 किलोमीटर लंबी दोहरी रेल सुरंग भी धड़क रही है और ये सिर्फ एक सुरंग नहीं, बल्कि विकास, जुड़ाव और आत्मनिर्भरता की प्रतीक है।
भारतीय रेलवे ने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना के तहत देश की सबसे लंबी दोहरी सुरंग को पूरा कर लिया है। यह वही इलाका है जहाँ सड़कें अक्सर भूस्खलन से गायब हो जाती हैं, जहाँ पैदल चलना कभी-कभी मजबूरी बन जाता है।
देवप्रयाग से जनासू के बीच बनी इस सुरंग का निर्माण अत्याधुनिक टनल बोरिंग मशीनों ‘शिव’ और ‘शक्ति’ की मदद से हुआ है। शिव ने 820 दिनों में रास्ता बनाया और शक्ति ने 851 दिनों में रास्ते को मजबूत किया। ये मशीनें सिर्फ तकनीक नहीं थीं, ये पर्वतीय जनजीवन से संवाद करती हुईं, उसके दर्द को सुनती हुईं, चट्टानों के भीतर विकास की लकीर खींच रही थीं।
ये सुरंग उस 125 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का हिस्सा है जो उत्तराखंड के पाँच पर्वतीय जिलों को पहली बार रेल नेटवर्क से जोड़ने जा रही है देहरादून, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग और चमोली। ये वो जिले हैं जहाँ जीवन अब भी एक संघर्ष है, लेकिन इस रेललाइन के पूरा होते ही सफर 7-8 घंटे से घटकर 2 घंटे का रह जाएगा। सोचिए, कितनी ही बीमारियाँ वक्त से अस्पताल पहुँच सकेंगी, कितने ही बच्चे रोज़ स्कूल जा पाएँगे और कितनी ही माँओं की आँखों से चिंता की लकीरें मिट जाएँगी।
यह सिर्फ यात्री ट्रेन नहीं, यह रेलगाड़ी उम्मीद की पटरी पर दौड़ रही है। प्राकृतिक बाधाएँ थीं चट्टानें फिसलीं, पानी रिसा, ज़मीन काँपी मगर रेलवे के इंजीनियरों ने हार नहीं मानी। बिना किसी बड़े व्यवधान के यह काम पूरा हुआ।
यह परियोजना सिर्फ तकनीकी नहीं है, यह सामाजिक और सामरिक है। जब आपदा आएगी, तो राहत ट्रेन पहले पहुँचेगी। जब देश को ज़रूरत होगी, तो सैनिकों की पहुँच तेज़ होगी।
उत्तराखंड के दूरस्थ गाँवों में अब रेलवे सिर्फ आवाजाही नहीं लाएगी, वह रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा लेकर आएगी।
कभी-कभी विकास की सबसे बड़ी ख़बरें किसी टीआरपी मीटर में नहीं टिकतीं लेकिन जब किसी पहाड़ी के भीतर सुरंग बनती है, तो उसका असर पीढ़ियों तक रहता है।

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