

914 किलो मादक पदार्थों का विधिसम्मत निस्तारण, मुख्यमंत्री के ‘ड्रग्स फ्री उत्तराखंड’ के वादे को जमीन पर उतारती एक ठोस कार्रवाई
राजेश सरकार
हल्द्वानी: जब पुलिस की कार्रवाई सिर्फ कागज़ों पर नहीं, ज़मीन पर नज़र आती है, तो समाज को सुकून की एक सांस मिलती है। और जब नशे के खिलाफ युद्ध सिर्फ बयानबाज़ी नहीं, बल्कि संगठित कार्रवाई में तब्दील हो जाए तो समझिए बदलाव की आहट सुनाई देने लगी है।
26 जून अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस और ठीक उसके आसपास उत्तराखंड के कुमायूँ परिक्षेत्र में वो हुआ, जो अब तक सिर्फ फाइलों में दर्ज पुरानी कवायदों का सपना था। आईजी कुमायूँ श्रीमती रिद्धिम अग्रवाल के नेतृत्व में क्षेत्र की अब तक की सबसे बड़ी और सबसे संगठित मादक पदार्थ निस्तारण प्रक्रिया को अंजाम दिया गया।
पुलिस ने सोमवार के दिन 324 अभियोगों से जब्त किए गए 914.91 किलोग्राम मादक पदार्थों को ग्लोबल इनवायरमेंटल सॉल्यूशन, लम्बाखेड़ा (रुद्रपुर) में वैज्ञानिक, विधिसम्मत और पर्यावरणीय मानकों के अनुसार दहन विधि से नष्ट किया। सिर्फ़ इस साल (2025) के नहीं, 1985, 1995 और 1998 जैसे दशकों पुराने मामलों में मालखानों में वर्षों से धूल खा रहे जब्त पदार्थों को भी चिन्हित कर निस्तारित किया गया यह वही ‘पेंडेंसी’ है, जो आमतौर पर व्यवस्था की उदासीनता का प्रतीक बन जाती है। इस अभियान की सफलता में आईजी रिद्धिम अग्रवाल की व्यक्तिगत निगरानी, फॉलोअप, और पारदर्शी मंशा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने न सिर्फ जनपदों के थानों से सीधा संवाद किया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि कोर्ट से अनुमति प्राप्त मामलों में जब्त मादक पदार्थ अनावश्यक रूप से मालखानों में सड़ें नहीं, बल्कि नियमानुसार जल्द से जल्द निस्तारित किए जाएं।
इस पूरे अभियान को केवल एक प्रशासनिक कार्रवाई कह देना अन्याय होगा। यह एक नैतिक और सामाजिक जवाबदेही का परिचायक है, एक संकेत कि पुलिस केवल अपराधियों को पकड़ने तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के भीतर से विष को हटाने के लिए भी संकल्पबद्ध है।
आईजी ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि यह प्रक्रिया एकबारगी नहीं, निरंतर चलने वाला अभियान होगी। हर साल, हर थाना, हर लंबित केस सबकी गहन समीक्षा कर यह सुनिश्चित किया जाएगा कि मादक पदार्थों का कोई भी अवशेष न तो न्याय प्रक्रिया को बाधित करे, न ही समाज को हानि पहुंचाए। कुल मिलाकर जब नशे के खिलाफ लड़ाई केवल भाषणों में नहीं, बल्कि मालखानों से लेकर भट्टियों तक पहुंचे तो समझिए व्यवस्था ने खुद को जगाया है। यह अभियान उत्तराखंड के हर युवा, हर मां-बाप, और हर स्कूल की उम्मीद बन सकता है, बशर्ते यह संकल्प जारी रहे।

यह आंकड़ा सिर्फ़ ‘रिकॉर्ड’ नहीं, बल्कि एक संकेत है कि जब प्रशासनिक नेतृत्व संजीदा हो, तो क़ानून की किताबें अमल में बदली जा सकती हैं।






