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हल्द्वानी: राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन द्वारा बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार और उनके संवैधानिक एवं अंतरराष्ट्रीय अधिकारों के उल्लंघन को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है।
यहा एक निजी रेस्त्रां में आहूत पत्रकार वार्ता में संगठन की प्रदेश अध्यक्ष श्रुति गोलवलकर ने बताया कि इस सम्बन्ध में उन्होंने राष्ट्रपति को एक ज्ञापन भी प्रेषित किया है। श्रुति ने बताया कि ज्ञापन में बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों, धार्मिक स्थलों पर हमलों की बढ़ती घटनाओं और महिलाओं व बच्चों के खिलाफ हिंसा का उल्लेख किया गया है।
उन्होंने बताया कि बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध, और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक कट्टरपंथियों के अत्याचारों का शिकार हो रहे हैं। 59 प्रतिशत हिंसा धार्मिक स्थलों को लक्षित करती है और 69 मंदिरों और पूजा स्थलों पर हमले किए गए हैं। कट्टरपंथियों द्वारा जबरन धर्मांतरण, अपहरण, बलात्कार और उत्पीड़न जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा हैं। साथ ही, बच्चों को शिक्षा और सुरक्षित जीवन से वंचित रखा जा रहा है और सांस्कृतिक धरोहरों का व्यवस्थित विनाश किया जा रहा है। उनका कहना था कि इसने बांग्लादेश के संविधान के अनुच्छेद 27, 28, 31, 41, और 42 के उल्लंघन की ओर भी इशारा किया, जो समानता, धार्मिक स्वतंत्रता, और संपत्ति के अधिकार की गारंटी देते हैं। साथ ही, ये घटनाएं अंतरराष्ट्रीय कानून जैसे 1948 का सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र ( यूडीएचआर) और 1966 की अंतर्राष्ट्रीय नागरिक और राजनीतिक अधिकार संधि (आईसीसीपीआर) का भी गंभीर उल्लंघन हैं। उन्होंने कहा कि हम संगठन के माध्यम से भारत सरकार से अपील करते है कि वे बांग्लादेश सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाए और संयुक्त राष्ट्र तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय समुदायों के माध्यम से धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने को कहें। उन्होंने एक स्वतंत्र जांच आयोग के गठन की मांग की, ताकि बांग्लादेश में हो रहे अत्याचारों की निष्पक्ष और विस्तृत जांच की जा सके। इस दौरान राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन की प्रदेश अध्यक्ष के साथ जिला प्रवक्ता राजेश जोशी, विवेक कश्यप सहित कई लोग मौजूद थे।

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