

हल्द्वानी: आज हम बात करेंगे उस मुद्दे की, जो आपके घर के ड्राइंग रूम से लेकर बैंक की दरवाज़ों तक दस्तक दे रहा है लोन। जी हाँ, वही लोन जो कभी घर का सपना पूरा करता है, तो कभी बाइक या कार की चाबी थमाता है। लेकिन अगर आप इस लोन की ईएमआई नहीं चुका पा रहे हैं, तो क्या आप डिफॉल्टर कहलाएंगे? क्या आपकी सिबिल रिपोर्ट लाल हो जाएगी? क्या बैंक वाला आपको देखकर चेहरा फेर लेगा?
नहीं। अब नहीं। क्योंकि भारतीय रिज़र्व बैंक यानी आरबीआई ने एक ऐसा नियम लागू किया है जो न सिर्फ आपके सिर का बोझ कम करेगा, बल्कि बैंक से रिश्ते भी बनाए रखेगा।
मान लीजिए आपने 10 लाख रुपये का होम लोन लिया है। शुरुआत में ईएमआई ठीक-ठाक लगती थी, लेकिन अचानक नौकरी चली गई, या मेडिकल इमरजेंसी आ गई, या व्यापार में घाटा हो गया, अब ईएमआई भारी लगने लगी है। ऐसे में आरबीआई कहता है कि आप डिफॉल्टर नहीं, इंसान हैं। और इंसान को दूसरा मौका मिलना चाहिए। लोन की रीस्ट्रक्चरिंग कीजिए। इसका मतलब ईएमआई को फिर से डिजाइन किया जाएगा। कुछ रकम (जैसे 5 लाख) अगर आप चुका सकते हैं, तो बाकी को लंबी अवधि में बाँटा जाएगा।
इससे ईएमआई छोटी होगी, भुगतान आसान होगा, और नींद पूरी आएगी। और सबसे बड़ी बात आपका सिबिल स्कोर नहीं बिगड़ेगा। क्योंकि आरबीआई ने कहा है कि अगर आपने लोन रीस्ट्रक्चर करवा लिया और समय पर ईएमआई चुकाई, तो बैंक आपको डिफॉल्टर नहीं मानेगा। यानी आपकी क्रेडिट हिस्ट्री बनी रहेगी, भविष्य में भी लोन मिलेगा और बैंक वाले भी आपको देख कर मुस्कराएँगे।
जो ईएमआई नहीं चुका पा रहे हैं, जिनका सिबिल स्कोर गिर रहा है जो दोबारा वित्तीय संतुलन चाहते हैं, वह इस समस्या से निपटने के लिए बस अपने बैंक में जाए, स्थिति बताइए और रीस्ट्रक्चरिंग के लिए आवेदन दीजिए। बैंक आपकी बात सुनेगा क्योंकि आरबीआई ने सुना है। क्योंकि लोन एक बोझ नहीं, एक ज़िम्मेदारी है। और ज़िम्मेदारी निभाने में अगर वक्त लगे, तो सिस्टम को समझना चाहिए। आरबीआई का ये नियम उसी समझदारी की मिसाल है।