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मेयर पद पर गजराज बिष्ट की दावेदारी से मची उथल-पुथल

हल्द्वानी नगर निगम क्षेत्र में है लगभग पौने तीन लाख मतदाता

हल्द्वानी: वैसे तो मांद में शेर ही रहा करते हैं, लेकिन वर्तमान में निकाय चुनावों की सरगर्मियों ने हल्द्वानी शहर को भी एक मांद के रूप में बदल दिया है। ठिठुरन भरी सर्दी के बीच, निकाय चुनावों पर ज़मी कुहासे की धुंध गहरी हो गई है। मेयर पद पर दावेदारी को लेकर चल रही खीचतान के बीच, अब संशय की गहरी चुप्पी को तोड़ते हुए सिंह रूपी गजराज बिष्ट अपनी मांद से बाहर निकलकर दावेदारी के मैदान में आ गए हैं। आज गुरुवार को उन्होंने भाजपा कार्यालय पहुंचकर न केवल मेयर सीट के लिए पर्यवेक्षकों के सामने अपना दावेदारी पत्र प्रस्तुत किया, बल्कि प्रदेश नेतृत्व से अपने पक्ष में सकारात्मक निर्णय की उम्मीद भी जताई।

अब सवाल यह है कि भाजपा का प्रदेश नेतृत्व गजराज बिष्ट की वरिष्ठता और उनके द्वारा विभिन्न पदों पर की गई सेवाओं को देखते हुए उन्हें मेयर पद का उम्मीदवार घोषित करता है या फिर किसी अन्य को यह मौका मिलता है। सभी कुछ आने वाले समय में पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट आने के बाद स्पष्ट होगा।

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हालांकि, गजराज बिष्ट के लंबा राजनीतिक अनुभव और वर्तमान समीकरण उन्हें मेयर पद का संभावित प्रत्याशी बना रहे हैं, लेकिन यदि प्रदेश नेतृत्व उनके नाम पर सहमति नहीं बनाता है, तो भाजपा का अगला प्रबल दावेदार कौन होगा? क्या भाजपा बाहर से आयातित नेता पर दांव खेल सकती है? यह सवाल हल्द्वानी नगर निगम के पौने तीन लाख मतदाताओं के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं।

इसके साथ ही, यदि भाजपा पैराशूट प्रत्याशी पर दांव खेलती है, तो क्या वह जिताऊ और टिकाऊ साबित होगा? ऐसे तमाम सवालों पर मंथन की जरूरत है।

हल्द्वानी नगर निगम चुनाव में भाजपा के पास मेयर पद पर दावेदारी करने वाले तमाम नामों के बीच, कांग्रेस से भाजपा में आए व्यापारी नेता नवीन वर्मा का नाम भी चर्चा में है। कहा जा रहा है कि भाजपा के कुछ नेताओं के इशारे पर ही नवीन वर्मा को पार्टी की सदस्यता दिलाई गई। ऐसे में यदि भाजपा, नवीन वर्मा को मेयर पद का चेहरा बनाती है, तो क्या वे भाजपा की उम्मीदों पर खरे उतर पाएंगे? उनकी उम्र (74 साल) को देखते हुए यह सवाल उठता है, क्योंकि उम्रदराज नेता को टिकट देने से भाजपा अपनी युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने की नीति से भटक सकती है, जैसा कि हाल के चुनावों में युवाओं को जिम्मेदारी सौंपने की नीति रही है।

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वहीं, युवा नेता गजराज बिष्ट के पास 36 वर्षों का राजनीतिक अनुभव और नेतृत्व क्षमता है। वे उत्तर प्रदेश में विभाजन के समय से भाजपा में सक्रिय हैं और ओबीसी वर्ग, खासकर नायक समुदाय में उनका अच्छा खासा जनाधार है। इसके बावजूद, यदि भाजपा स्तर से उनके मेयर पद की दावेदारी को खारिज किया जाता है, तो यह भाजपा के अंदर नई खींचतान को जन्म दे सकता है।

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