हल्द्वानी। इस मृत्यु लोक में जो आया है, उसे वापस भी जाना है। यह सभी को पता है, लेकिन वापस जाना यानी संसार से मुक्ति पाना या सरल भाषा में कहें कि जीवन लीला समाप्त होने की वजह क्या है, यह बड़ा सवाल है। आमतौर पर किसी हादसे, प्राकृतिक आपदा या बीमारी से होने वाली मौत के मामलों में पोस्टमार्टम नहीं कराया जाता, क्योंकि यह प्राकृतिक मौत की श्रेणी में आती है, लेकिन गोली लगना, धारदार हथियार से हमला कर मौत के घाट उतारना या जिन मामलों में मौत की पूरी वजह साफ नहीं होती है। उनमें पोस्टमार्टम कराया जाता है। वहीं, आपराधिक मामलों में पोस्टमार्टम होने के बाद पुलिस को जो रिपोर्ट मिलती वह उस केस को सुलझाने और दोषियों को सजा दिलाने में अहम भूमिका निभाती है। क्यों होती है पोस्टमार्टम की जरूरत यह एक ऐसा सवाल है? जिसके एक नहीं चार जवाब है। पहला मौत का कारण पता करने के लिए पोस्टमार्टम कराना जरूरी है, इसके द्वारा ही पता चलता है कि जिस व्यक्ति की मौत हुई है तो वह कौन सा कारण है? जिसकी वजह से शरीर को इतना नुकसान पहुंचा, जिससे मौत हो गई। दूसरा शरीर पर किन चोटों की वजह से मौत हुई, यानि यदि गोली या धारदार हथियार और लाठी-डंडे के हमले से मौत हुई है तो वह हमले कितने खतरनाक रहे है, जिनसे मौत हो गई। तीसरा पोस्टमार्टम से कितने समय पहले मौत हुई है या इसे कह सकते हैं कि मौत का सही समय क्या रहा होगा? यह किसी भी मौत में आरोपी के लिए काफी अहम होता है, क्योकि यदि आरोपी को दोषी या निर्दोष साबित करना है तो मौत के समय वह कहां था, यह जानकारी काफी अहम होती है। जबकि चौथा जवाब है कि किसी भी अज्ञात शव की पहचान कराने में पोस्टमार्टम काफी अहम भूमिका निभाता है। क्योकिं जब पोस्टमार्टम होता है तो यह केवल शरीर के किसी एक अंग विशेष का नहीं होता बल्कि पूरे मृत शरीर का होता है। ऐसे में मृत की लंबाई, हुलिया, रंग, शरीर पर मौजूद पहचान योग्य निशान की जानकारी आदि पता चलती है। जिससे मृतक के परिजनों को शव की पहचान करने मे मदद मिलती है। बता दे कि इस वर्तमान में उत्तराखंड में 5 राजकीय मेडिकल कॉलेज कार्य कर रहे है। जिनमें फोरेंसिक डिपार्टमेंट है, जहां अटोप्सी यानी पोस्टमार्टम के बारे में पढ़ाई कराई जाती है और जिन डॉक्टरों ने फारेंसिक साइंस की पढ़ाई कर रखी होती है। वहीं, बेहतर तरीके से पोस्टमार्टम कर सकते हैं, लेकिन अब भी आमतौर पर एमबीबीएस डॉक्टरों से ही पोस्टमार्टम कराया जाता है। पोस्टमार्टम किसी भी इंसान की मौत की गुत्थी सुलझाने में सबसे अहम भूमिका निभाता है। इसकी रिपोर्ट के आधार पर ही कानूनी रूप से सजा मिलने का प्रावधान है, बस यह सही तरीके से होना चाहिए। यही सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है।
एमबीबीएस डाक्टर भी कर सकते है पीएम
पोस्टमार्टम को लेकर राजकीय मेडिकल कालेज अल्मोड़ा के प्राचार्य डॉ सी.पी. भेसौडा का कहना है कि नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) के अनुसार मेडिको लीगल कार्य कोई भी प्रशिक्षित एमबीबीएस डाक्टर कर सकता है। उनका कहना था कि फॉरेंसिक साइंस के विशेषज्ञ मेडिकल कालेजों में सम्बन्धित विषय को पढ़ाने के लिए ही पर्याप्त रूप में उपलब्ध नहीं हो पा रहें है, ऐसी स्थिति में फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स से पीएम कराने की बात करना दूर की कौड़ी ही है।