Advertisement
Ad
ख़बर शेयर करें -

देहरादून/नई दिल्ली। गंगा नदी के फ्लड प्लेन (बाढ़ क्षेत्र) के सीमांकन में सालों से जारी टालमटोल और आदेशों की अवहेलना पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) का सब्र आखिरकार जवाब दे गया। ट्रिब्यूनल ने उत्तराखंड सरकार पर सख्त रुख अपनाते हुए राज्य के मुख्य सचिव को प्रतिवादी बनाया है और देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। एनजीटी ने आठ सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट भी तलब की है।
नई दिल्ली स्थित एनजीटी की प्रधान पीठ न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए. सेंथिल वेल ने यह आदेश हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में बेलीराम आश्रम के आसपास गंगा की फ्लड प्लेन में हुए निर्माण और उससे जुड़े प्रदूषण के मामले की सुनवाई के दौरान पारित किया।
पीठ ने साफ शब्दों में कहा कि गंगा की फ्लड प्लेन का सीमांकन 1:100 वर्ष की अधिकतम बाढ़ सीमा के आधार पर किया जाना कोई विकल्प नहीं, बल्कि कानूनी बाध्यता है। ट्रिब्यूनल ने यह भी रेखांकित किया कि गंगा पुनर्जीवन, संरक्षण एवं प्रबंधन प्राधिकरण आदेश-2016 के तहत अन्य राज्यों में 1 मीटर कंटूर के आधार पर सीमांकन किया जा रहा है, जबकि उत्तराखंड में 10 मीटर कंटूर अपनाकर बाढ़ क्षेत्र को कागज़ों में ही छोटा कर दिया गया।
सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच), रुड़की के वैज्ञानिक एके लोहानी ने बताया कि 2016 में 1 मीटर कंटूर डेटा उपलब्ध नहीं था, लेकिन अब यह न केवल उपलब्ध है, बल्कि ज्यादा सटीक भी है। उन्होंने कहा कि सभी तकनीकी आंकड़े मौजूद हैं और अगर नीयत हो तो एक-दो महीने में सीमांकन पूरा किया जा सकता है।
एनजीटी ने रिकॉर्ड में लिया कि 18 अगस्त 2025 को राज्य सरकार ने छह महीने में काम पूरा करने का भरोसा दिलाया था, लेकिन 13 नवंबर 2025 की सुनवाई में खुद सरकार ने स्वीकार किया कि ज़मीन पर कुछ भी नहीं हुआ। बाद में सिंचाई विभाग के एक अधिकारी ने फंड की कमी का बहाना पेश किया, जिस पर ट्रिब्यूनल ने नाराज़गी जताते हुए कहा यह बात पहले क्यों नहीं बताई गई?
ट्रिब्यूनल ने यह भी पाया कि राज्य सरकार की बैठकों में एनजीटी के आदेशों को दरकिनार करते हुए 1 मीटर कंटूर के बजाय 1 मीटर डीईएम के आधार पर सीमांकन का फैसला लिया गया, जो निर्देशों की खुली अवहेलना है।
मार्च 2023 से लंबित इस मामले में अब तक 13 बार सुनवाई हो चुकी है, लेकिन नतीजा शून्य रहा। इसे गंभीर प्रशासनिक लापरवाही मानते हुए एनजीटी ने आदेश दिया कि जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान कर कार्रवाई की जाए, फंड की कमी को बहाना न बनने दिया जाए और आठ सप्ताह में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की जाए। अगली सुनवाई 23 फरवरी 2026 को होगी।
ट्रिब्यूनल ने यह भी स्पष्ट किया कि 100 वर्षीय बाढ़ का मतलब यह नहीं कि बाढ़ सौ साल में एक बार आएगी, बल्कि इसका अर्थ है कि हर साल उस स्तर की बाढ़ आने की एक प्रतिशत संभावना रहती है। पर्यावरण कानूनों में फ्लड प्लेन तय करने का यही वैज्ञानिक आधार है।
विशेषज्ञों का कहना है कि 1 मीटर कंटूर से नदी के वास्तविक फैलाव और बाढ़ क्षेत्र की सटीक तस्वीर सामने आती है, जबकि 10 मीटर कंटूर सिर्फ आंकड़ों का खेल है। सवाल यही है क्या गंगा को सच में बचाना है, या फिर फाइलों में ही बहने देना है?

Comments