

ईडी की छापेमारी के बाद भी चुप है शासन, पीसीएस अधिकारी को बचा रहा है कौन?
देहरादून। ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) की टीम एक पीसीएस अधिकारी के घर छापा मारती है। देहरादून, उधमसिंह नगर और यूपी के बरेली समेत 9 ठिकानों पर एक साथ कार्रवाई होती है। 24 लाख से ज्यादा नकदी, और महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद होते हैं। छापा एनएच-74 के बहुचर्चित घोटाले से जुड़ा है।
लेकिन इस कार्रवाई के एक हफ्ते बाद भी उत्तराखंड शासन पूरी तरह खामोश है। न कोई निलंबन, न कोई जांच, न कोई जवाब। जैसे कुछ हुआ ही न हो। सवाल ये है आखिर शासन क्यों चुप है?
गौरतलब है कि एनएच-74 घोटाले की परतें 2017 में खुलनी शुरू हुई थीं। मामला था किसानों से ज़मीन अधिग्रहण में भारी गड़बड़ी, फर्जी मुआवज़ा वितरण और करोड़ों के हेरफेर का। एसआईटी जांच हुई, तीन पीसीएस अधिकारी जेल गए, कई अन्य भी लपेटे में आए।
जेल में सबसे लंबे वक्त तक रहे अधिकारी थे देवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ डीपी सिंह, जिन्हें 14 महीने की न्यायिक हिरासत के बाद ज़मानत मिली। लेकिन फिर वही पुरानी कहानी राजनीतिक पहुंच, ऊपरी रसूख, और धीरे-धीरे सबकुछ ‘साफ’।
डीपी सिंह को न केवल बहाल कर दिया गया, बल्कि डोईवाला शुगर मिल का जनरल मैनेजर बना दिया गया। इसी पद से ईडी की रेड से तीन दिन पहले उनका स्थानांतरण कर दिया गया और उन्हें एक और लाभकारी पोस्ट संयुक्त मुख्य प्रशासक, उत्तराखंड आवास एवं नगर विकास प्राधिकरण पर बैठा दिया गया।
ईडी की छापेमारी ने इस पुरानी फाइल में दोबारा जान फूंकी। लेकिन हैरानी की बात ये है कि जांच एजेंसी की इस बड़ी कार्रवाई के बावजूद शासन का एक भी पत्ता नहीं हिला।
न कोई प्रेस रिलीज, न कोई निलंबन, न कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई और न ही कोई स्पष्ट बयान, अब सवाल उठता है कि शासन किसके दबाव में है? सूत्र बताते हैं कि कुछ ताकतवर नेता और अधिकारी इस पीसीएस अधिकारी को बचा रहे हैं। ये वही लोग हैं जिन्होंने पहले शासन की जांच में क्लीन चिट दिलवाई और अब भी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि ईडी की कार्रवाई को भी दबा दिया जाए।
क्या ये नेता इतने प्रभावशाली हैं कि शासन तक उनके सामने झुक रहा है? क्या उत्तराखंड की जीरो टॉलरेंस की नीति सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह गई है?
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को उनके तेज़ फैसलों और धाकड़ बल्लेबाजी के लिए जाना जाता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तक उनकी कार्यशैली की तारीफ कर चुके हैं। हरिद्वार ज़मीन घोटाले में उन्होंने आईएएस और पीसीएस अधिकारियों को निलंबित कर अपनी नीति साफ की थी।
अब सवाल उठता है कि क्या एनएच-74 जैसे बड़े और पुराने घोटाले में भी वो वैसा ही एक्शन लेंगे? सचिवालय के गलियारों में ये चर्चा गर्म है क्या इस बार भी धामी सरकार वही करेगी जो पहले की सरकारें करती आई हैं चुप रहना? या फिर मुख्यमंत्री एक बार फिर धमाकेदार एक्शन लेकर जनता का भरोसा कायम रखेंगे?
जनता देख रही है और इंतजार कर रही है
शासन की चुप्पी अब चुप्पी नहीं, मिलीभगत जैसी लगने लगी है। एक अधिकारी के घर से बरामद नकदी और दस्तावेज़ अब सरकारी फाइलों में नहीं, जनता की निगाहों में हैं।
अब जनता का सवाल सीधा है कब होगी धाकड़ सीएम की बैटिंग? क्योंकि इस बार बॉल सीधी व्यवस्था की गर्दन पर है।