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देहरादून के डीएम सविन बंसल बनते जा रहे हैं जनता की उम्मीदों की पहचान

देहरादून: जब सत्ता के गलियारों में कुर्सी के साथ संवेदना बैठती है, तो नज़ारा कुछ अलग होता है। आज हम बात करेंगे देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल की, जो प्रशासन की कुर्सी पर बैठकर सिर्फ आदेश नहीं दे रहे, बल्कि ज़मीनी हकीकत को बदल रहे हैं, बेटियों की शिक्षा से लेकर बुजुर्गों की ज़मीन तक, और विधवा महिला की न्यायिक पीड़ा से लेकर बाल मजदूरी उन्मूलन तक।
देहरादून में एक पहल चल रही है, नाम है ‘नंदा-सुनंदा’। सुनने में जितना सौम्य, उद्देश्य में उतना ही सशक्त। जिलाधिकारी सविन बंसल की इस पहल ने अब तक 14 लाख रुपये से 38 निर्धन बालिकाओं की शिक्षा पुनर्जीवित की है। हाल ही में 5 बेटियों को कुल 1,65,800 रुपये के चेक वितरित किए गए। इन बेटियों के नाम गौरांशी सिंघल (₹35,000), अनुष्का क्षेत्री (₹7,800), वैष्णवी (₹33,000), तनु शर्मा (₹60,000) और शताक्षी शर्मा (₹30,000) है। जिलाधिकारी ने बेटियों को सिर्फ आर्थिक सहायता ही नहीं दी, बल्कि उन्हें यह भरोसा भी दिया कि ‘आप शिक्षा की चिंगारी जलाए रखो, जिला प्रशासन उसे मशाल में बदल देगा।’
देहरादून शहर की गलियों में जो बच्चे कभी कटोरा लेकर घूमते थे, आज वे किताब लेकर स्कूल जा रहे हैं। यह करिश्मा हुआ है एक माइक्रो प्लान से साधु राम इंटर कॉलेज में बने आधुनिक इंटेंसिव केयर सेंटर में। यहां अब तक 231 बच्चों को भिक्षावृत्ति से मुक्त कर शिक्षा की मुख्यधारा में जोड़ा गया है।
कम्प्यूटर, योगा, प्रोजेक्टर और एक्टिविटी-बेस्ड लर्निंग अब ये सब किसी महानगर के महंगे स्कूल तक सीमित नहीं, बल्कि देहरादून के इन बच्चों की दिनचर्या का हिस्सा है।
अब ज़रा सोचिए एक 97 वर्षीय महिला, शारीरिक रूप से अक्षम, अपनी ही ज़मीन के लिए 25 सालों से भटक रही हो और फिर आता है एक डीएम, जो उनकी शिकायत को ना सिर्फ सुुनता है बल्कि उस पर एक्शन भी लेता है।
लीला देवी और उनकी 80 वर्षीय बेटी नीना गुरूंग को उनकी ज़मीन पर फिर से हक दिलाया गया।
अवैध रूप से संचालित गैस गोदाम को सील किया गया, लीज खत्म हो चुकी थी लेकिन ज़मीन पर कब्जा बरकरार था जांच हुई, कार्रवाई हुई, और फिर न्याय भी हुआ।
डीएम सविन बंसल और एसडीएम कुमकुम जोशी की यह त्वरित कार्रवाई एक नज़ीर बन गई है। न्याय को कचहरी की तारीखों से निकालकर इंसान की चौखट तक पहुंचाया गया।
शिवानी गुप्ता नाम की विधवा महिला अपने पति की मृत्यु के बाद एक साल तक प्राइवेट बैंक और बीमा कंपनी के चक्कर काट रही थीं। 15.50 लाख का ऋण और बीमा के नाम पर सिर्फ अस्वीकृति मिल रही थी।
जब मामला जिलाधिकारी के जनता दर्शन कार्यक्रम में पहुंचा, तो सिर्फ फाइलें नहीं चलीं एक्शन हुआ।
डीएम के निर्देश पर डीसीबी बैंक की शाखा सीज कर दी गई। तीन दिन के भीतर बैंक ने शिवानी गुप्ता के संपत्ति के कागज लौटाए, नो ड्यूज सर्टिफिकेट दिया, और 15.50 लाख रुपये का ऋण माफ किया।
इस एक्शन ने साबित कर दिया कि जब सरकार की नज़र सिर्फ ‘आंकड़ों’ पर नहीं, इंसानों की ‘आहों’ पर भी हो तो बदलाव होता है।
जिलाधिकारी सविन बंसल और उनकी टीम प्रशासन को किताबों और बैठकों से निकाल कर जनता के बीच लेकर आए हैं। एसडीएम कुमकुम जोशी जैसे अधिकारी इस बदलाव के सिपाही हैं। जहां फरियादी की आवाज़ दबाई जाती है, वहीं अब आवाज़ सुनने और उस पर कार्रवाई करने वाला प्रशासन सामने आ रहा है। कुल मिलाकर ये सिर्फ ‘सरकारी काम’ नहीं, ये एक ‘सामाजिक परिवर्तन’ है। आज जब देशभर में प्रशासनिक लापरवाही के किस्से आम हैं, वहीं देहरादून में जिला प्रशासन का ये चेहरा अलग है संवेदनशील, सक्रिय और निडर।

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