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रामनगर: उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुए अवैध निर्माण और अवैध पेड़ कटान का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार वजह है सीबीआई की सक्रियता, जिसने अब जांच पूरी कर ली है और शासन से चार अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति मांगी है।
सीबीआई ने इस घोटाले में जो जांच की, वह कई चौंकाने वाले खुलासों से भरी हुई है। जांच में सामने आया है कि रिजर्व क्षेत्र में बिना अंतिम मंजूरी के निर्माण कार्य शुरू कर दिए गए, जितने पेड़ों को काटने की अनुमति थी, उससे कहीं ज्यादा पेड़ काटे गए, इतना ही नहीं जांच में पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और डीएफओ किशनचंद की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है।
इस पूरे मामलें में सीबीआई ने सचिवालय पहुंच कर प्रमुख सचिव वन और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से दो बार मुलाकात की है।
सीबीआई ने इस पूरे मामले में कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल कर दी है और अब चार्जशीट की तैयारी कर रही है।
वहीं इस पूरे प्रकरण में भारत की सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि यह मामला दिखाता है कि नेताओं और अधिकारियों की साठगांठ किस तरह पर्यावरण और जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ करती है।
कोर्ट ने इस प्रकरण को “पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत को कूड़ेदान में फेंकने का उत्कृष्ट उदाहरण” बताया।
अब यहां सवाल य़ह उठता है कि क्या सिर्फ चार अधिकारियों पर कार्रवाई से बात खत्म हो जाएगी?
क्या उन राजनेताओं से भी जवाब लिया जाएगा जिनके संरक्षण में यह सब हुआ?
क्या पर्यावरण के नाम पर किये इस अपराध की भरपाई मुमकिन है?
क्योंकि अब जनता देख रही है कि क्या सच में दोषियों को सजा मिलेगी, या ये मामला भी फाइलों में दब जाएगा।

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