

“डमी स्कूलों से बचने के लिए सीबीएसई की नई गाइडलाइन: 12वीं की परीक्षा के लिए 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य”
- राजेश सरकार
हल्द्वानी: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने एक नई गाइडलाइन जारी की है, जो विद्यार्थियों के लिए एक सख्त चेतावनी के रूप में आई है। अब, जो विद्यार्थी नियमित कक्षाओं में शामिल नहीं होंगे, उन्हें 12वीं की बोर्ड परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जाएगी। सीबीएसई ने यह निर्णय लिया है कि विद्यार्थियों के लिए 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य होगी। अगर कोई विद्यार्थी कक्षाओं में अनुपस्थित रहता है, तो उसे राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) की परीक्षा देनी होगी। यह निर्देश शैक्षणिक सत्र 2025-26 से लागू होगा।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का यह कदम एक सख्त दिशा में उठाया गया है, जो डमी स्कूलों और कोचिंग इंस्टिट्यूट्स के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए है। इस बदलाव के बाद, जो अभिभावक अपने बच्चों को कोचिंग इंस्टिट्यूट्स में दाखिला दिलवाकर, उन्हें छद्म स्कूलों में भेजते हैं, उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
वर्तमान में, कई कोचिंग इंस्टिट्यूट्स बच्चों को दाखिला देने के बाद उन्हें स्कूल के नाम पर एक डमी स्कूल में भेजने का धंधा चला रहे हैं। इन डमी स्कूलों में विद्यार्थियों की उपस्थिति केवल कुछ दिनों के लिए होती है, जबकि वे असल में कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाई करते हैं। यह खेल केवल हल्द्वानी या आसपास के क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे राज्य में एक बड़े पैमाने पर चल रहा है, और राज्य सरकार द्वारा इन संस्थानों को खुलेआम संरक्षण प्राप्त है।
बड़े-बड़े विज्ञापनों और होर्डिंग्स के माध्यम से अभिभावकों को यह भरोसा दिलाया जाता है कि इन कोचिंग इंस्टिट्यूट्स में पढ़ने वाले बच्चे भविष्य में बड़े डॉक्टर, इंजीनियर या प्रशासक बनेंगे। इसके बाद, अभिभावक अपने बच्चों को एक ‘ब्रांडेड’ कोचिंग इंस्टिट्यूट में भेजने के लिए तैयार हो जाते हैं।
इस प्रणाली को लागू करने के लिए स्कूलों और कोचिंग इंस्टिट्यूट्स के बीच एक समझौता किया जाता है, जिसमें बच्चे कोचिंग इंस्टिट्यूट में तो पढ़ाई करते हैं, लेकिन स्कूल के नाम पर उनका प्रवेश एक डमी स्कूल में करवा दिया जाता है। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कोचिंग इंस्टिट्यूट्स को संचालित करने के लिए कोई भी लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती, जबकि स्कूलों के लिए यह प्रक्रिया अनिवार्य है। यह नागरिक सुरक्षा के लिहाज से एक गंभीर सवाल है, और जिलाधिकारियों को इस पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए।
इन डमी स्कूलों में विद्यार्थियों की उपस्थिति केवल 30-40 दिनों की होती है, जो सीबीएसई के मानकों से बहुत कम है। बोर्ड के नियमों के मुताबिक, किसी भी विद्यार्थी को 12वीं की परीक्षा देने के लिए 75% उपस्थिति अनिवार्य है। अगर यह नियम सख्ती से लागू किया जाए, तो इन कोचिंग इंस्टिट्यूट्स का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
यह समस्या केवल शिक्षा से जुड़ी नहीं है, बल्कि यह नागरिक सुरक्षा का भी मामला बन गया है। यदि नियमों का पालन सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से सख्ती से किया जाए, तो यह पूरी व्यवस्था बदल सकती है। जिलाधिकारियों को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, क्योंकि यह केवल शिक्षा का मामला नहीं है, बल्कि हमारे बच्चों के भविष्य का सवाल है।
यह समय है जब अभिभावकों को शिक्षा के असली उद्देश्य को समझना होगा और उन्हें दिखावे के बजाय बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए सही मार्ग पर चलने का मार्गदर्शन करना होगा।

क्या होते है डमी स्कूल ?
डमी स्कूल ऐसे विद्यालय होते हैं, जहाँ छात्रों का दाखिला तो होता है, लेकिन उन्हें नियमित कक्षाओं में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होती। इन्हें “नॉन-अटेंडिंग स्कूल” भी कहा जाता है। इन स्कूलों में दाखिला लेने का मुख्य उद्देश्य उन छात्रों का होता है जो जेईई मेन, जेईई एडवांस, नीट जैसी प्रमुख प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करना चाहते हैं।इन छात्रों का प्राथमिक ध्यान कक्षाओं की बजाय कोचिंग इंस्टिट्यूट्स पर होता है, जहाँ वे अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। डमी स्कूल में दाखिला लेकर, ये छात्र केवल नाममात्र की उपस्थिति के लिए स्कूल जाते हैं, जबकि असल में उनकी पढ़ाई कोचिंग इंस्टिट्यूट्स में होती है। परिणामस्वरूप, ये छात्र सीधे बोर्ड परीक्षा में शामिल होते हैं, बिना किसी नियमित कक्षा के। यह व्यवस्था उन विद्यार्थियों के लिए सुविधाजनक मानी जाती है जो परीक्षा की तैयारी पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं, लेकिन इसके कारण शिक्षा के गुणवत्ता और नियमित कक्षाओं में उपस्थिति को लेकर गंभीर सवाल उठते हैं।