

देहरादून: आज सुबह ठीक 6 बजे, जब आप और हम अलार्म स्नूज़ कर रहे थे, हिमालय की गोद में बसी बदरीनाथ नगरी में घंटों की गूंज के साथ एक नया अध्यात्मिक अध्याय खुल रहा था। करीब 15 क्विंटल रंग-बिरंगे फूलों की सुगंध से सराबोर बदरी विशाल के मंदिर के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए।
यह सिर्फ कपाट नहीं खुले, यह आस्था का वो दरवाज़ा है जो हर साल आधे वर्ष के लिए खुलता है और बाकी आधा वर्ष भगवान की ओर से बंद रहता है।
सिंहद्वार से लेकर गर्भगृह तक हर कोना भक्ति की अलौकिक सजावट में लिपटा हुआ था। हेलीकॉप्टर से हुई पुष्पवर्षा ने जैसे आसमान से आशीर्वाद की बौछार कर दी हो। ढोल-नगाड़ों की ताल और सेना के बैंड की धुनों ने इस भक्ति के माहौल को और भी जीवंत कर दिया।
मुख्य पुजारी ने जैसे ही परंपरागत विधि-विधान से लक्ष्मी माता को गर्भगृह से बाहर निकालकर लक्ष्मी मंदिर में स्थापित किया, ठीक वैसे ही बदरीनाथ धाम की आत्मा भी सांस लेती प्रतीत हुई। फिर उद्धव, कुबेर, और भगवान विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति का स्नान और श्रृंगार यह सब मानो एक सजीव कथा का आरंभ था।
आज से अगले छह महीने, देवभूमि की यह धड़कन प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं की आस्था से गूंजेगी। और जब सर्दियाँ आएंगी, तब फिर भगवान को सौंप दिया जाएगा पूजा का कार्य, देवर्षि नारद की अगुवाई में।
बदरीनाथ सिर्फ एक तीर्थ नहीं, यह वो जगह है जहाँ श्रद्धा समय से ऊपर हो जाती है।