- राजेश सरकार
हल्द्वानी। खादी नेताओ की मन प्रसंदीदा पोशाकों में शामिल रही है और देखा जाये तो नेतागण भी खादी के कुर्तें पैजामे के बिना अधूरे है। खासकर चुनावी मौसम में खादी का रंग नेताओं के सिर चढ़कर बोलता है। लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में खादी की बिक्री सूनी रही और गांधी आश्रमो में सन्नाटा पसरा रहा। इसके पीछे क्या कारण हो सकता है? क्या नेताओं व कार्यकर्ताओं के बीच खादी का क्रेज कम हो गया है? या कोई और वजह रही बहरहाल कारण जो भी रहा हो, लेकिन यह खादी के लिये अच्छा संकेत नहीं है। अब तक इससे पूर्व के चुनावों में तो चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होते ही खादी आश्रमों में नेताओं की आवाजाही शुरू हो जाती थी। चुनावी कार्यक्रम के तहत रैली, सभाओं के लिए झण्ड़े, बैनर, के लिये खादी के थान के थान हाथो हाथ बिक जाया करते थे। लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं दिखायी दिया। जबकि पूर्व के चुनाव में खादी आश्रमों की बिक्री में अच्छा खासा उछाल देखने को मिलता रहा है। नेताओं में खादी के प्रति आया यह रूखापन किसी भी सूरत में खादी आश्रमों के हित में नहीं है। यदि ऐसा ही रहा तो राष्ट्रीयता की प्रतीक रही खादी एक दिन गुमनामी के अंधेरों में कही खो जायेगी और इसी के साथ लुप्त हो जायगें महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से जुड़ी खादी की विचारधारा, जिसके जरिये उन्होंने दुनिया में एक नई क्रांति ला दी थी। वास्तविकता में खादी सिर्फ एक कपड़ा न होकर स्वालम्बन की ऐसी विचारधारा है जो राष्ट्र के लिये हमेशा गौरव का विषय रही है। इसलिये खादी को उसकी गौरवशाली पहचान दिलाने के लिये एक बार फिर से ठोस रणनीति के साथ जुटना होगा तभी खादी जन-जन व हर मन की खादी बन पायेगी।
इस बार नही दिखा पहले जैसा क्रेज: जोशी
खादी को लेकर कलावती कालोनी में स्थित गांधी आश्रम के सचिव दीप चन्द्र जोशी का कहना है कि जो नेतागण पहले खादी को लेकर जाने जाते थे, इस बार के चुनाव में उनमें खादी के प्रति वह उत्साह नही दिखायी दिया। जो इससे पूर्व के चुनाव में दिखायी देता था, बिक्री का औषत भी बहुत कम रहा है।