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राजेश सरकार
हल्द्वानी। जंग-ए-आजादी से लेकर बड़े-बड़े आन्दोलनों की नीव रखने वाले हल्द्वानी शहर अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही राजनीति का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। देश के पहले संसदीय चुनाव में यहां कांग्रेसी परचम शान से लहराया था। इसके बाद लगातार कांग्रेस ने नैनीताल लोकसभा सीट पर अपना क़ब्ज़ा बरकरार रखा। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद वर्ष 2009 तक तो कुछ उतार चढ़ाव के बावजूद सब कुछ ठीक ठाक रहा, लेकिन इसके बाद से यहाँ कांग्रेस का ग्राफ तेजी से नीचे होता गया, यही वजह है कि पिछले कुछ सालों से यहां पार्टी की गत बनी हुई है। यहां सबसे बड़ा सवाल य़ह है कि इस दुर्गति के पीछे संगठनात्मक कमी है या फिर टांग खिचाई अथवा गुटबाजी? अगर कहे कि तीनों वजह वाजिब है तो कुछ गलत न होगा।

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नैनीताल लोकसभा सीट, कब कोन रहा विजयी

1951 सीडी पांडेय (कांग्रेस), 1957 सीडी पांडेय (कांग्रेस), 1962 केसी पंत (कांग्रेस), 1971 केसी पंत (कांग्रेस जे), 1977 भारत भूषण (भालोद), 1980 एनडी तिवारी (कांग्रेस), 1984 सत्येंद्र चंद गुड़िया (काग्रेस), 1989 डॉ महेंद्र पाल (जनता दल), 1991 बलराज पासी (भाजपा), 1996 एनडी तिवारी (कांग्रेस), 1998 ईला पंत (भाजपा), 1999 एनडी तिवारी (कांग्रेस), उप चुनाव 2002 डॉ महेंद्र पाल (कांग्रेस), 2004 के सी बाबा (कांग्रेस), 2009 केसी बाबा (कांग्रेस), 2014 भगत सिंह कोश्यारी (भाजपा), 2019 अजय भट्ट (भाजपा)।

संगठन चढ़ा गुटबाजी की भेट

कुल मिलाकर यहाँ अब फिर यही सवाल उठता है कि नैनीताल लोक सभा सीट पर शुरू से ही मजबूत कांग्रेस को दीमक क्यों लगी। राजनीतिज्ञ पंडित इसका विश्लेषण करने बैठते है तो यही निष्कर्ष निकलता है कि नैनीताल सीट में संगठन की कमजोरी को लेकर गुटबाजी और एक दूसरे की टांग खिचाई के चलते पार्टी यहाँ अक्सर रुसवा हुई। कई पुराने कांग्रेसी वर्तमान स्थानीय संगठन पर भी अक्सर अंगुली उठाते है। हालाकि लोकसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी हाईकमान फ़िलहाल संगठनात्मक पहलू पर चुप है, लेकिन मिशन 2024 को साधने के लिए कांग्रेस को अपने सबसे निचले स्तर के संगठन से लेकर जिला और शहर स्तर पर संगठनों को मजबूत करना होगा।

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