

देहरादून। उत्तराखंड के हल्द्वानी स्थित डॉ. सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज में कार्यरत 659 उपनल कर्मचारियों के लिए आखिरकार उम्मीद की सुबह आ गई है। छह महीनों से रुकी हुई तनख्वाहों की धूप अब सरकारी फाइलों की धुंध को चीरकर बाहर निकल आई है। शासन ने 22 करोड़ रुपये की धनराशि को मंजूरी दे दी है।
आप सोचिए, जिन लोगों ने आधे साल तक बिना वेतन के काम किया, अस्पताल की ज़मीन पर टिके रहे, मरीजों की सेवा करते रहे वो अब जाकर अपने हिस्से की मेहनताना पा सकेंगे।
उपनल महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद गोदियाल बताते हैं कि कर्मचारियों की नाराज़गी जायज़ थी। दिन-प्रतिदिन का कार्य बहिष्कार कोई शौक़ नहीं था, बल्कि सिस्टम को जगाने की एक कोशिश थी। अंततः 1 सितंबर को कालाढूंगी के विधायक बंशीधर भगत के हस्तक्षेप से कार्य बहिष्कार तो रुका, लेकिन वेतन का वादा तब भी कागज़ों में ही था। अब वह वादा हकीकत बन चुका है।
प्रदेश मीडिया प्रभारी प्रदीप सिंह चौहान इस सफलता को कर्मचारियों की एकता, संघर्ष और धैर्य का नतीजा बताते हैं। सोचिए, वेतन नहीं मिला, फिर भी कर्म नहीं छोड़ा यह एक आदर्श है उस व्यवस्था के लिए जो अक्सर कर्मठता की जगह चापलूसी को तरजीह देती है।
अब जब प्रशासनिक मंजूरी मिल गई है, तो उम्मीद की जा रही है कि वेतन की राशि जल्द ही कर्मचारियों के खातों में पहुँचेगी। एक ऐसे दौर में जब महंगाई सिर पर है और नौकरियों में अस्थिरता आम हो चुकी है, यह खबर थोड़ी राहत देती है। थोड़ी उम्मीद जगाती है। क्योंकि कभी-कभी सरकारें भी सुन लेती हैं बशर्ते आवाज़ एकजुट होकर उठाई जाए।