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जब बाढ़ उतरती है तो सिर्फ कीचड़ नहीं छोड़ती, पीछे रह जाती है टूटे हुए सपनों की लाशें और सरकार की चुप्पी का शोर।

देहरादून: आज हम बात कर रहे हैं उन वाहनों की, जो उत्तर भारत की इस भीषण आपदा में मलबे के नीचे दब गए, नदियों में बह गए या फिर बोल्डरों के नीचे चकनाचूर हो गए।
उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में मानसून इस बार बरसात नहीं, बर्बादी लेकर आया।
पहाड़ों से गिरे पत्थर, नालों में तब्दील हुई सड़कें, और बहती हुई गाड़ियां मानो किसी डिजास्टर फिल्म का ट्रेलर हो। लेकिन ये ट्रेलर नहीं था, ये रियलिटी थी। और इसमें अभिनय करने वाले असली लोग थे वो पर्यटक जो पहली बार पहाड़ देखने आए थे, टैक्सी वाले जो रोज़ की कमाई पर जिए जा रहे थे, और वो ग्रामीण, जिनकी गाड़ियां उनके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी थी।
हमने पूछा जब इन गाड़ियों पर बोल्डर गिरते हैं, जब ये बाढ़ में बह जाती हैं, तो क्या इनके मालिक को कोई राहत मिलती है?
उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन विभाग के अपर सचिव आनंद स्वरूप ने साफ कहा नहीं। सरकार के आपदा मानकों में वाहनों के लिए कोई मुआवज़ा नहीं है। यानि आपकी गाड़ी चाहे 5 लाख की हो या 25 लाख की अगर उसे आपदा लील जाए तो सरकार के लिए वो सिर्फ एक नंबर प्लेट है।
हमने बात की भारत सरकार की इंश्योरेंस कंपनी न्यू इंडिया इंश्योरेंस के रीजनल मैनेजर मोतीराम से तो उन्होंने कहा अगर दस्तावेज पूरे हैं, इंश्योरेंस वैध है, तो प्राकृतिक आपदा में क्लेम दिया जाता है।लेकिन साथ ही चेताया कि अगर वाहन का परमिट नहीं है, फिटनेस लैप्स है, या वो ऑफ-रोड पर चला गया था तो इंश्योरेंस कंपनी आपका क्लेम रोक सकती है। यानि आप बाढ़ में बह भी गए और आपकी गलती इंश्योरेंस पेपर में रही तो सिस्टम कहेगा दोष आपका है।
आरटीओ देहरादून के प्रशासनिक अधिकारी संदीप सैनी कहते हैं अगर वाहन पूरी तरह से नष्ट हो गया है, तो रजिस्ट्रेशन कैंसिल करवा कर इंश्योरेंस क्लेम किया जा सकता है।
कमर्शियल वाहनों के लिए टैक्स में कुछ राहत भी दी जाती है। लेकिन अगर आपने गाड़ी को उस रास्ते पर ले जाया, जो आरटीओ अप्रूव नहीं था तो फिर आपकी दिक्कत आपकी ही रहेगी।
मोतीराम बताते हैं कि धराली जैसे क्षेत्रों में बीमा प्रक्रिया युद्ध स्तर पर शुरू की जाती है। लेकिन युद्ध स्तर पर नुकसान झेलने वाले परिवारों के लिए सिर्फ क्लेम ही काफी है?
उनकी मानसिक पीड़ा, उनका टूटता आत्मविश्वास, उनका उजड़ता भविष्य उसका हिसाब कौन रखेगा?
आपदा की गूंज में सरकार बस ईंट, पत्थर, जान-माल का आंकड़ा गिनती है। गाड़ियों की कोई गिनती नहीं होती। कोई केंद्रीय रिपोर्ट नहीं बनती। कोई मुआवज़ा नहीं तय होता। क्योंकि एक गाड़ी को मरा हुआ नहीं माना जाता है।
जब आपदा में घर उजड़ता है तो सरकार मदद करती है, तो फिर जब वाहन उजड़ता है जो किसी के जीवन का आधार है तो सरकार चुप क्यों है? क्या इंश्योरेंस ही एकमात्र रास्ता है? अगर हां, तो फिर 75 प्रतिशत से ज़्यादा वाहन आज भी बिना डिजास्टर कवर वाले क्यों हैं? और सबसे जरूरी जो पहाड़ों की तरफ जा रहे हैं, क्या उन्हें कोई चेतावनी मिलती है? या फिर हम सब बस किस्मत के भरोसे जी रहे हैं? इस तरह की खबर आपके टीवी या समाचार पत्रों पर नहीं आएगी, क्योंकि इसमें ना पाकिस्तान है, ना विपक्ष का बयान, सिर्फ इंसान है और उसकी टूटी हुई उम्मीदें। आप उन लोगों से मिलिए, जिनकी गाड़ियां चली गईं और साथ में उनकी ज़िंदगी भी।

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