

देहरादून/हल्द्वानी: ये खबर आपको बेचैन करेगी। ये खबर आपको सोचने पर मजबूर करेगी कि जब शिक्षा, वो भी अल्पसंख्यकों के लिए दी जाने वाली छात्रवृत्ति, भ्रष्टाचार की बलि चढ़ा दी जाती है, तो असल में कौन पढ़ रहा है और कौन डकार रहा है?
देहरादून से आई ये खबर, किसी रूटीन प्रेस रिलीज की तरह नहीं है।
यह रिपोर्ट एक ऐसे नेटवर्क का पर्दाफाश है, जहां कागज़ों में छात्र पढ़ते हैं, सर्टिफिकेट बनते हैं, आधार कार्ड लगते हैं, और छात्रवृत्तियां हजम कर ली जाती हैं। असली छात्र कहीं और होंगे, और इन कॉलेजों में केवल फर्जीवाड़े की रजिस्ट्री भरी जाती रही।
प्रदेश के 17 कॉलेजों में हुए खुलासे के बाद अब दूसरे चरण का वेरिफिकेशन शुरू हो चुका है। उत्तराखंड के 72 कॉलेजों की जांच होगी, आधार से लेकर सर्टिफिकेट तक सब खंगाला जाएगा।
कागज़ों में बंगाल का छात्र रुद्रप्रयाग के संस्कृत कॉलेज में पढ़ रहा है।
संघ से जुड़े नामी शिशु मंदिर का भी नाम सामने आया है। यूपी, बिहार, बंगाल के छात्रों के नाम पर उत्तराखंड में छात्रवृत्तियां ली जा रही हैं। इससे बड़ी और क्या विडंबना हो सकती है? अब सवाल उठता है ये सब कैसे चलता रहा? केंद्र के पोर्टल ने जब ये फर्जीवाड़ा पकड़ा, तो राज्य सरकार की भी नींद टूटी।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जांच के आदेश दिए हैं। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के विशेष सचिव पराग मधुकर धकाते खुद इस पूरे मामले की निगरानी कर रहे हैं।
पर सवाल यह नहीं है कि जांच क्यों हो रही है, सवाल यह है कि ये घोटाला पनपा कैसे? क्या यह केवल अधिकारियों की लापरवाही थी? या फिर एक सुनियोजित योजना, जहां हर लेवल पर हिस्सेदारी तय थी?
आप सोचिए कि एक गरीब मुसलमान, सिख, ईसाई या जैन छात्र पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति का फॉर्म भरता है, उम्मीद करता है कि उसके भविष्य की राह थोड़ी आसान होगी। लेकिन उसकी जगह किसी और का नाम लगा होता है।
फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे उसका हक कोई और ले जाता है। ये सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं है ये धोखा है। देश के सबसे संवेदनशील तबकों के साथ, शिक्षा के नाम पर। सरकार ने अब कमेटियां बना दी हैं, जांचें चल रही हैं, सर्टिफिकेट वेरिफाई किए जा रहे हैं लेकिन जो पैसा डकार लिया गया, क्या वो लौटेगा? जिन छात्रों के नाम पर ये घोटाला हुआ, क्या उन्हें कभी इंसाफ मिलेगा? और सबसे बड़ा सवाल य़ह है कि क्या अगली बार फिर यही सब दोहराया जाएगा?
फिलहाल, कैमरे बंद हैं, माइक भी ऑफ है। अब आपकी बारी है सवाल करने की, जवाब मांगने की।
लेकिन अगर आप इस रिपोर्ट से बेचैन हैं, तो समझिए ये आवाज अब आपकी भी है।






