Advertisement
ख़बर शेयर करें -

चुनावी गणित बनाम संवैधानिक गणना, लोकतंत्र की सड़क पर दो वोटर आईडी की सवारी

नैनीताल: सरोवर नगरी नैनीताल की वादियों में चुनावी धुंध अब कुछ साफ़ होती दिख रही है। उत्तराखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ मुख्य न्यायाधीश जे नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसे अगर आप ‘निर्णय’ न मानें, तो ‘लोकतंत्र को आईना दिखाने वाला आदेश’ जरूर कह सकते हैं।
राज्य निर्वाचन आयोग ने 6 जुलाई को एक स्पष्टीकरण आदेश निकाला था हाँ, स्पष्टीकरण, यानी कि वोट की बात में भी अब ‘व्याख्या’ की ज़रूरत पड़ने लगी है। आदेश में कहा गया कि अगर किसी उम्मीदवार का नाम नगर निकाय और ग्राम पंचायत दोनों की मतदाता सूची में है, तो कोई बात नहीं! चुनाव लड़ लीजिए, लोकतंत्र बड़ा दिलवाला है।
लेकिन कोर्ट ने इस पर सीधा और स्पष्ट स्टे लगा दिया है। कोर्ट ने कहा ‘एक व्यक्ति, एक वोट। एक ही जगह से चुनाव।’ अब इस पर कोई अगर कहे कि ये कोई नया सिद्धांत है, तो माफ कीजिए, ये तो वही पुरानी किताब की धूल खाई हुई लाइन है जिसे अब जाकर झाड़ा गया है।
बता दें कि याचिकाकर्ता शक्ति सिंह बर्थवाल एक पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता ने कोर्ट से पूछा जब भारत में दो अलग-अलग मतदाता सूचियों में नाम दर्ज कराना आपराधिक श्रेणी में आता है, तो उत्तराखंड में इसे कैसे सामान्य बना दिया गया?
याचिकाकर्ता के वकील अभिजय नेगी ने दलील दी कि निर्वाचन आयोग की छूट साफ तौर पर संविधान और पंचायती कानूनों की भावना के खिलाफ है। और कोर्ट ने माना कि यह निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया पर सीधा हमला है।
इस फैसले के बाद वो तमाम उम्मीदवार जो एक साथ दो जगह से चुनाव लड़ने का सपना देख रहे थे, उनके लिए अब गणित गड़बड़ हो सकता है। हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है एक व्यक्ति सिर्फ एक स्थान पर ही वोटर हो सकता है और वहीं से चुनाव लड़ सकता है। अब सवाल उठता है कि क्या चुनाव लड़ने की योग्यता का मापदंड इतना लचीला हो सकता है कि उसमें एक ही इंसान दो जगह की ज़मीन पकड़ ले?
ये फैसला सिर्फ एक तकनीकी रोक नहीं है। ये एक संदेश है उस लोकतंत्र के लिए, जिसमें आज भी मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए लोगों को कई चक्कर काटने पड़ते हैं, लेकिन कुछ खास लोग दो-दो सूचियों में नाम लिखवाकर भी कानूनन योग्य हो जाते हैं। सवाल अब सिर्फ कानून का नहीं है, नैतिकता का है। और सवाल ये भी है क्या चुनाव अब भी एक पवित्र प्रक्रिया है, या बस एक कानूनी चालाकी का खेल?

Comments