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हल्द्वानी। “छ्प गए कार्ड आल लाडो तेरी शादी के, बंट रहे है कार्ड रे आज लाडो तेरी शादी के”। शादियों में दावत के लिए नौतने को कार्डस शादी समारोह का वैसे तो सबसे अहम हिस्सा होते है लेकिन कोरोनाकाल के बाद एवं सोशल मीडिया के इस दौर में आधुनिकता की छाप न्योता देने अथवा नौतने पर भी पड़ चुकी है। भाग-दौड़ वाली इस जिंदगी में समय की बचत सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। शादी समारोह के लिए बांटे जाने वाले इंविटेशन कार्डस की महत्ता को हालांकि नकारा नहीं जा सकता। कार्डस न पहुंचने पर किसी भी परिचित के रूठ जाने के डर से ज्यादातर लोग कार्डस अथवा इंविटेशन पर खास फोकस करते है। हालांकि हल्द्वानी से लेकर दिल्ली तक शादी कार्डस का थोक कारोबार करने वाले व्यापारियों की बातों पर अगर विश्वास करें तो एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आता है। इन व्यापारियों के अनुसार अगर कोरोना काल के बाद की स्थिति देखें तो शादी कार्डस का कारोबार लगभग 40 प्रतिशत तक घट गया है। व्यापरियों के अनुसार कोरोनाकाल के बाद उनके कारोबार पर अच्छा खासा असर पड़ा है। वो कहते है कि जहां कोरोना से पूर्व छोटे से छोटे फंक्शन के लिए भी लोग कार्डस बांटते थे वहीं अब यह दायरा काफी हद तक सिमट कर सिर्फ शादियों के इर्द गिर्द रह गया है। वह तो यहां तक बताते हैं कि अब शादियों में भी कार्ड का कारोबार 60 फीसदी तक रह गया है। एक अन्य कार्ड कारोबारी कहते है की कोरोनाकाल में मुस्लिम परिवारों में हजारों दहेज विहीन शादियां हुई जिसमें कार्ड बांटने अथवा न्योता देना का रिवाज काफी हद तक कम रहा। उनके अनुसार कोरोनाकाल वाला यह सिलसिला काफी हद तक कोरोनाकाल के बाद भी जारी रहा।

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वाटसएप बना पसंदीदा माध्यम

कार्ड कारोबारी बताते हैं कि अब कई लोग शादियों में अपने परिचितों को नौतने के लिए जहां कार्ड के इस्तेमाल के अलावा वाटसएप और वीडियो कॉल को खास तरजीह दे रहे है। इन कारोबारियों के अनुसार कई बार लोग एक कार्ड का खूबसूरत डिजाइन तैयार करवा कर अपने परिचितों को वाटसएप कर देते हैं या फिर वीडियो कॉल कर न्योता दे रहें है। कार्ड कारोबारियों के अनुसार हांलाकि यह परम्परा कार्ड कारोबारियों के लिए जरूर घाटे का सौदा है लेकिन इससे लोगों के समय और पैसे दोनों की बचत हो रही है।

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