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पिथौरागढ़ हादसे ने चंद्र सिंह के आंगन से हँसी छीन ली

पिथौरागढ़: पिथौरागढ़ की सड़कों पर हादसे अब केवल आंकड़े नहीं रह गए हैं, ये अब गांवों की चुप गलियों में मातम बनकर उतर आए हैं।
15 जुलाई की शाम, जब मुवानी इलाके में एक मैक्स वाहन खाई में गिरा, तो सिर्फ आठ जानें नहीं गईं, आठ परिवारों की रगों में कुछ हमेशा के लिए जम गया एक शून्य, एक सन्नाटा।
इस खबर को पढ़ते हुए शायद आप एक पल के लिए ठहर जाएं, लेकिन बोकटा गांव का समय अब ठहरा हुआ ही है। चंद्र सिंह नाम का एक पिता है, जिनकी दो बेटियां विनीता और तनुजा रोज की तरह स्कूल गई थीं। लेकिन उस रोज़ लौटकर आने की बात न उन्होंने की, न वक्त ने उन्हें मौका दिया। विनीता 11वीं में थी, तनुजा 9वीं में। दोनों बहनें एक-दूसरे की साया थीं। अब उनके छोटे भाई की आंखें दरवाज़े पर टिकी हैं। उसे नहीं पता कि अब वो आवाज़ें कभी नहीं आएंगी भैया, होमवर्क दिखा या आज मैडम ने क्या पढ़ाया?
गांव अब पहले जैसा नहीं रहा। मां की चीखें, पिता की चुप्पी और उस भाई की मासूम उम्मीद ये सब मिलकर एक ऐसा दृश्य बनाते हैं जिसे लिखते हुए उंगलियां भी कांप जाएं। लेकिन इन हादसों की खबरें अक्सर बस ‘ब्रेकिंग’ बनकर रह जाती हैं, जब तक अगली ब्रेकिंग न आ जाए।
जिला अस्पताल में अभी भी घायल जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है
क्या इन रास्तों पर कभी सुरक्षा लौटेगी? या ये रास्ते यूं ही बच्चों को निगलते रहेंगे?
हम बार-बार कहां चूक रहे हैं? प्रशासन कब तक ‘जांच के आदेश’ देता रहेगा और गांव कब तक अपनी बेटियों को गंवाता रहेगा? सवाल बहुत हैं, जवाब कम।
और इस बार जवाब मांगने वाले सिर्फ पत्रकार नहीं, एक पिता है जिनकी दोनों बेटियां स्कूल गई थीं।
शायद अब स्कूल जाना भी डराने लगा है।

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