Advertisement
ख़बर शेयर करें -

धराली में सीएम धामी की जमीनी जद्दोजहद, धरती कांपी, आसमां बरसा, मगर इंसानियत डटी रही,आपदा के बीच उम्मीद की लौ

राजेश सरकार
देहरादून/उत्तरकाशी। एक ओर आसमान लगातार बरसता रहा, बादल गरजते रहे, पहाड़ों में मलबा सरकता रहा, नदियाँ उफनती रहीं और दूसरी ओर, धराली के लोगों की आँखों में सिर्फ़ एक उम्मीद थी कि कोई आएगा, उन्हें देखेगा, सुनेगा, समझेगा। बुधवार सुबह, जब एक हेलीकॉप्टर ने मौसम की बेरहम चुनौतियों को चीरते हुए धराली की ज़मीन को छुआ, तो यह महज़ एक उड़ान नहीं थी यह उन आँसुओं में भीग चुकी उम्मीदों की पहली सार्थक दस्तक थी। हेलीकॉप्टर से उतरे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और जब उन्होंने वहाँ के लोगों को गले लगाया तो कई लोगों की आँखों से वो आँसू झर पड़े, जो कई रातों से भीतर ही भीतर उबल रहे थे।
धराली में आई आपदा ने सिर्फ़ घर और ज़िंदगी नहीं छीनी, उसने उस ‘सामान्यता’ को भी छीन लिया जिसे लोग रोज़मर्रा कहते हैं। दो लोगों के शव बरामद हो चुके हैं, लगभग 15 लोग अब भी लापता हैं। सैकड़ों प्रभावित हैं। लेकिन सबसे बड़ा नुकसान यह है कि हर आंख अब आकाश की ओर देख रही है मदद के इंतज़ार में।
मुख्यमंत्री ने प्रभावितों को आश्वस्त किया कि इस कठिन समय में राज्य सरकार हर प्रभावित व्यक्ति के साथ मजबूती से खड़ी है। और यह महज़ बयान नहीं था, क्योंकि इसके साथ ही राहत सामग्री, मेडिकल टीमें, सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ के जवान, सब धीरे-धीरे ग्राउंड जीरो पर पहुँचने लगे।
मुख्यमंत्री जब ज़मीन पर उतरे तो वहाँ सिर्फ़ राजनीतिक रस्म अदायगी नहीं थी। वह एक-एक पीड़ित के पास गए। किसी की आँखों में देखा, किसी का हाथ थामा। कई लोग उनसे लिपट कर रो पड़े। यह राजनीति नहीं थी, यह उस व्यवस्था का मानवीय चेहरा था जिसे अक्सर लोग सिर्फ़ प्रेस नोट्स में पढ़ते हैं।
सड़कें टूटी हैं, पुल बह गए हैं, लेकिन सरकार और स्थानीय प्रशासन अब राहत कार्यों को युद्धस्तर पर अंजाम दे रहे हैं। हर्षिल, भटवाड़ी, पापड़गाड़ और लिंचा ब्रिज हर जगह जंग जैसे हालात हैं, लेकिन कोशिशें ज़िंदा हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद मुख्यमंत्री धामी से बात की और राहत कार्यों की जानकारी ली। केंद्र सरकार ने सहायता में कोई देरी नहीं की चिनूक हेलीकॉप्टर, एएन-32, एमआई-17, एनडीआरएफ के दस्ते, और सैटेलाइट फोन से लैस जवान सब भेजे जा चुके हैं। ये महज़ प्रशासनिक कदम नहीं हैं, यह एक संकेत है कि देश अब आपदाओं से लड़ने में अकेला नहीं छोड़ेगा।
यूकाड़ा के हेलीकॉप्टरों ने दिन भर सात उड़ानें भरीं। पहली उड़ान में मुख्यमंत्री, दूसरी में जिलाधिकारी और एसपी, तीसरी में राहतकर्मी। हर उड़ान एक राहत का पैगाम लेकर आई। और हर उतरता जवान, हर उठती एंबुलेंस, हर बांटा गया फूड पैकेट यह बताता है कि धराली अब अकेली नहीं है।
सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ हर एजेंसी के जवान इस मुश्किल युद्ध में एक ही हथियार लेकर आए हैं सेवा, समर्पण और साहस।
सरकारी आंकड़े कहेंगे कि कितने लोग लापता हैं, कितने बैड आरक्षित हैं, कितनी एंबुलेंस तैनात हैं। लेकिन धराली की सच्चाई इन आंकड़ों से परे है। यहाँ हर मुस्कुराता चेहरा एक कहानी है कैसे लोगों ने रातें जागकर बिताईं, कैसे जवानों ने हाथ से रास्ता खोला, कैसे डॉक्टर्स की टीम बिना सोए इलाज कर रही है।
मुख्यमंत्री ने साफ़ कहा है कि जब तक हर प्रभावित व्यक्ति तक राहत नहीं पहुंचती, तब तक यह अभियान रुकेगा नहीं। हेलीकॉप्टर सिर्फ रसद नहीं ला रहे, वे धराली के लिए एक नया विश्वास ला रहे हैं।
हम अक्सर कहते हैं कि सरकारें लोगों की नहीं सुनतीं। लेकिन जब एक मुख्यमंत्री खुद धरती पर उतरता है, पीड़ितों से गले लगता है, तब लगता है कि व्यवस्था अगर चाहे, तो संवेदनशील हो सकती है।
धराली में अभी भी संकट है। लेकिन संकट के बीच जो कुछ खड़ा हो रहा है वह राजनीति नहीं है, वह है रिश्तों की रेस्क्यूिंग। यह रेस्क्यू किसी मलबे से ज़्यादा, भरोसे को बाहर निकालने का प्रयास है। धरती हिली है, पर इंसानियत नहीं। सरकार आई है, लेकिन साथ में संवेदना भी लाई है। धराली अकेला नहीं है यह सिर्फ़ नारा नहीं, अब एक सच्चाई है।

Comments