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पूर्व कैबिनेट मंत्री पहले ही जता रहे थे अपने खिलाफ कार्यवाई की आशंका

हल्द्वानी। पाखरो रेंज में हरे पेड़ों के कटान व अन्य अनियमितताओ को लेकर हरक सिंह रावत पर विजिलेंस ने शिकंजा कस दिया है। भले ही हाइकोर्ट के आदेश पर य़ह कार्यवाई हुई है, लेकिन इसके सियासी निहितार्थ है और हरक सिंह का राजनीतिक कैरियर इससे प्रभावित हो सकता है।
बता दे कि जनवरी 2022 को हरक सिंह रावत को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वन मंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया था। उन्हें छह वर्ष के लिए भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से भी निलंबित कर दिया गया। करीब 6 साल तक भाजपा का झंडा उठाने के बाद हरक सिंह रावत फिर कांग्रेस में लौट आए। जिस समय कांग्रेस में हरक सिंह रावत की वापसी हुई उस समय प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका था। अन्य कांग्रेस नेताओं की तरह हरक सिंह रावत को उम्मीद थी कि इस बार भाजपा को शिकस्त मिलेगी और सत्ता पर दोबारा कांग्रेस का क़ब्ज़ा होगा। लेकिन सभी अनुमान धराशाई हुए और भाजपा की दोबारा सत्ता में वापसी हुई। पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में दोबारा भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही हरक सिंह रावत को अपने खिलाफ कार्यवाई का डर सताने लगा। मार्च 2022 में नई सरकार के गठन के बाद से हरक सिंह रावत कई बार इसकी आशंका जता चुके थे। उनकी आशंका निर्मूल भी नहीं थी। क्योंकि जब तक जिम कार्बेट के पाखरो रेंज का मामला एक जनहित याचिका के जरिए हाइकोर्ट पहुंच चुका था।
हाइकोर्ट की सख्ती का आलम य़ह रहा कि 21 अगस्त को हुई सुनवाई में अदालत ने सरकार से साफ साफ पूछा कि इस प्रकरण में तत्कालीन वन मंत्री के खिलाफ क्या कार्यवाई की गई? चूकिं एक सितम्बर को सरकार को हाइकोर्ट में जवाब देना है, इस कारण विजिलेंस को कार्यवाई करनी पडी। इस विधिक कार्यवाई से हरक सिंह को लगता है कि उनके खिलाफ बदले की भावना से कार्यवाई की गई है। लेकिन सवाल य़ह है कि कॉर्बेट नेशनल पार्क के लिए खरीदे गए जनरेटर उनके पुत्र के मेडिकल कालेज में क्यों थे? दागी अफसरों पर महरबानी क्यों दिखाई गई? हरक सिंह को इसका ज़वाब न सिर्फ अदालत और पुलिस में बल्कि सियासत के मैदान में देना पड़ेगा।
हरक सिंह अक्सर य़ह जुमला उछालते रहते थे कि ‘हरक को नहीं पड़ता है किसी बात का फरक’। उनके दावों में कितना दम है इसकी परिक्षा भी अब होगी।

                            संजय झा
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