

करेंट फैलने की अफवाह पर प्रशासन की खामोशी, ऊर्जा निगम ने पूरी तरह किया खारिज, मृतकों के लिए राहत राशि, लेकिन सवाल बना प्रशासन की जवाबदेही
देहरादून/हरिद्वार। मनसा देवी मंदिर में रविवार को हुई भगदड़ ने प्रदेश की जनता के होश उड़ा दिए। जब कांवड़ यात्रा खत्म हो चुकी थी और पुलिस प्रशासन अपनी ड्यूटी से रिलैक्स हो चुका था, उसी समय मंदिर के संकरे रास्ते पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ अचानक नियंत्रण से बाहर हो गई। ये हादसा प्रशासन की उस लापरवाही का आईना है, जिसने समय रहते उचित सुरक्षा और भीड़ नियंत्रण के उपाय नहीं किए।
शिवरात्रि के बाद हरिद्वार में आमतौर पर श्रद्धालुओं की संख्या में भारी कमी आ जाती है। लेकिन इस बार रविवार को उम्मीद से 10 गुना ज्यादा लोग मंदिर पहुंचे। पुलिस और प्रशासन इस अनपेक्षित भारी भीड़ के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे। मंदिर के संकरे रास्ते पर लोग टकराने लगे, रास्ता बंद हो गया और फिर भगदड़ मची।
इस बीच एक अफवाह ने जैसे आग में घी डाल दिया, करेंट लगने की खबर। लेकिन यह अफवाह पूरी तरह झूठी निकली। ऊर्जा निगम ने भी इस बात को पूरी तरह खारिज किया है। विभाग के अधिशाषी अभियंता प्रदीप कुमार ने साफ कहा कि पूरी जगह का निरीक्षण किया गया, कहीं नंगे तार या करेंट फैलने की कोई संभावना नहीं मिली। इतना ही नहीं अस्पतालों में कोई भी ऐसा मरीज रिपोर्ट नहीं हुआ है जिसे करेंट लगा हो।
यहां सवाल उठता है कि इतनी बड़ी घटना के बाद भी प्रशासन ने अफवाहों पर तुरंत विराम क्यों नहीं लगाया? क्या सच में उन्हें अपना काम करने का मन ही नहीं था?
भयावह घटना में अब तक आठ श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है और 26 लोग गंभीर रूप से घायल हैं। सरकार ने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये और घायलों को पचास-पचास हजार रुपये की राहत राशि देने की घोषणा की है, लेकिन क्या इससे प्रशासन की खामियों और जान गंवाने वालों के प्रति उनकी जिम्मेदारी मिट जाएगी?
सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास विनोद कुमार सुमन ने हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं, जो सही कदम है, लेकिन इस पूरी त्रासदी के लिए प्रशासन की नाकामी और पुलिस की बेज़ुबानी किसी से छुपी नहीं है। हरिद्वार के एसएसपी प्रमेंद्र डोबाल ने भी माना कि करेंट फैलने की खबर महज अफवाह थी, लेकिन उस अफवाह को फैलने से रोकने की जिम्मेदारी कौन लेगा?
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले में मजिस्ट्रियल जांच का आदेश दिया है, जो एक जरूरी कदम है। पर क्या यह जांच भी एक और कागजी कार्रवाई बनकर रह जाएगी? क्या इस तरह की लापरवाहियों से कोई सबक लिया जाएगा?
यह हादसा सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि उस सिस्टम की पराजय है जो बड़े आयोजन और भारी भीड़ के प्रबंधन के लिए पहले से तैयारी नहीं करता। पुलिस और प्रशासन की लापरवाही ने मानवीय जीवन को खतरे में डाला। इस घटना से सबक लेकर अब तत्काल प्रभाव से ठोस कदम उठाए जाने होंगे ताकि दोबारा ऐसी त्रासदी न हो।