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हल्द्वानी: नैनीताल की अदालत में सन्नाटा था, लेकिन सवाल बहुत थे। सवाल खनन के गड्ढों का नहीं, सवाल ज़मीर के गड्ढों का था। उत्तराखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति आलोक महरा की मौजूदगी में बागेश्वर जिले के कांडा तहसील समेत कई गांवों में हो रहे अवैध खड़िया खनन पर सुनवाई हुई। खामोशी से सुनवाई हुई, और बहुत कुछ बिना बोले ही कह दिया गया।
कोर्ट का साफ़ संदेश दिया कि रोक नहीं हटेगी। यह वही रोक है, जो जमीन के सीने को छलनी होने से बचा रही है। कोर्ट ने कहा, खनन बंद रहेगा, लेकिन जो गड्ढे खनन ने छोड़े हैं, उन्हें भरा जाएगा सरकारी निगरानी में, जीओ टैगिंग के साथ। मतलब यह कि हर गड्ढा अब एक दस्तावेज़ बनेगा। कोई झूठ नहीं बोल सकेगा कि ‘हमने कुछ नहीं किया’। हर गड्ढे का इतिहास दर्ज होगा, जैसे कि कोई युद्धक्षेत्र हो।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
खनन से निकली सामग्री अभी खानों में पड़ी है, धूल खा रही है, जैसे कोई ज़माने की गवाही चुपचाप देती हो। अब उस खनिज की नीलामी होगी पर्यावरणविद शेखर पाठक की अध्यक्षता में। ये वही पाठक हैं, जिन्होंने पहाड़ों की चुप्पी को पढ़ा है, और जंगलों की आवाज़ को सुना है।
अब बात अल्मोड़ा की। यहां की मैग्नेसाइट खान को लेकर कोर्ट का रुख ज़रा अलग था। कहा गया कि यहां खनन नियमों के मुताबिक़ हुआ, रिपोर्ट भी उनके हक़ में आई है। उन्हें ब्लास्टिंग की भी इजाज़त दी गई, बशर्ते बाकी सब ठीक हो। लेकिन पीसीबी यानी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कहता है, इनका लाइसेंस तो रद्द है। कोर्ट ने कहा फिर जाओ, आवेदन दो, कायदे से।
खनन करने वालों की भी एक दास्तान है। वे कहते हैं हम पर कर्ज़ है। बैंक के नोटिस आते हैं। हमारी लीज़ खत्म हो रही है। रोक हटा दो, वरना हम टूट जाएंगे।
लेकिन सवाल ये है कि जब खनन हो रहा था, तब पर्यावरण क्यों नहीं दिखा? तब नियमों की किताबें क्यों नहीं पढ़ी गईं?
बड़ी बात ये है कि ये मामला खुद हाईकोर्ट ने उठाया है। कोई याचिकाकर्ता नहीं, खुद न्यायपालिका जनहित याचिका बन गई। क्योंकि जब सरकारें चुप हो जाती हैं, जब प्रशासन खनन माफियाओं की जेब में चला जाता है, तब न्यायपालिका को आगे आना पड़ता है। अब इस मामले मे आगामी सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी।
छह हफ्ते का वक्त है सोचने का, समझने का, और गलती को सुधारने का। पर असल सवाल ये है कि क्या सिर्फ खनन को रोकने से पर्यावरण बचेगा, या हमें अपनी सोच भी बदलनी होगी? शायद यही कि पैसे के लालच में जो ज़मीन खोदी जाती है, वो एक दिन हमारी आत्मा भी लील जाती है।

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