ख़बर शेयर करें -

काग्रेस ने मनोज रावत तो भाजपा ने आशा नौटियाल को बनाया अपना उम्मीदवार

देहरादून: केदारनाथ की तीर्थभूमि अगले कुछ दिनों तक रणभूमि के रूप में नजर आएगी। इस विधानसभा के उपचुनाव के लिए आखिर कांग्रेस ने अपने पत्ते खोल ही दिए और एक बार फिर अपने पूर्व विधायक मनोज रावत पर ही दांव खेला है। वहीं देर रात भाजपा ने भी अपना उम्मीदवार चयन कर दिया है। भाजपा ने आशा नौटियाल को टिकट दिया है। इस चुनाव में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। उसे पाना ही पाना है, लेकिन भाजपा की पूरी साख दांव पर लगी है। सीधा कहें तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए यह चुनाव सीधा अपनी प्रतिष्ठा से जुड़ा है। उसकी बड़ी वजह यह है कि अभी कुछ माह पूर्व ही देवभूमि की ही एक अन्य तीर्थस्थल वाली सीट बद्रीनाथ पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हरसंभव कोशिशों के बावजूद मुंह की खानी पड़ी थी। इस हार ने सोशल मीडिया पर भाजपा की खूब किरकिरी करवाई थी। बद्रीनाथ की हार से सबक लेकर भाजपा इस बार दूध का जला हुआ वाले अंदाज में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। बद्रीनाथ में हार का ही नतीजा है कि केदारनाथ में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है और पिछले दिनों मुख्यमंत्री धामी ने इस विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर यहां के लिए कई योजनाओं की झड़ी लगा दी। प्रत्याशी चयन में भी भाजपा की यह अतिरिक्त सतर्कता साफ झलक रही है। उन्होंने देर शाम आशा नौटियाल को टिकट दिया है। केदारनाथ में भाजपा के सामने दो मजबूत महिला दावेदारों को लेकर दुविधा थी। इन दो दावेदारों में पहली दिवंगत विधायक शैलारानी रावत की बेटी ऐश्वर्या रावत थी और दूसरी उसकी अपनी पूर्व विधायक आशा नौटियाल। दोनों बड़ी मजबूती से अपनी दावेदारी ठोक रही थी। ऐश्वर्या रावत टिकट की घोषणा से पहले ही नामांकन प्रपत्र खरीदकर अपना इरादा जाहिर कर चुकी थी, वहीं आशा समर्थक पूरे आशावादी होकर क्षेत्र में पहले ही प्रचार कार्य में जुट गए थे। भाजपा का संकट यह था कि वह ऐश्वर्या को टिकट देकर उनके परिवार के प्रति उपजी सहानुभूति की लहर पर सवार होकर चुनावी मंदाकिनी पार करे या फिर आशा की लोकप्रियता व पकड़ के सहारे सीट को अपने कब्जे में बनाए रखे। ऐश्वर्या को टिकट न देने पर वह सहानुभूति लहर का लाभ न मिल पाने का खतरा था और आशा टिकट से वंचित होती तो भाजपा के उस कोर ब्राह्मण वोटर के नाराज होने की आशंका थी,जिसकी नाराजगी के चलते भाजपा को बद्रीनाथ सीट कांग्रेस के हाथों गंवानी पड़ी। दूसरी तरफ, कांग्रेस शुरू से भाजपा के मुकाबले थोड़ा अधिक एकजुट नजर आ रही है। शुरूआती दौर में मनोज रावत के अलावा इस सीट पर दिग्गज कांग्रेस नेता हरक सिंह भी दावा ठोक रहे थे। लेकिन बाद में उनके तेवर नरम पड़ गए और ऐसा नहीं प्रतीत होता कि मनोज को कोई सशक्त अंतर्विरोध झेलना पड़े। चूंकि मनोज रावत की छवि पार्टी के अंदर एक अच्छे वक्ता और सुशिक्षित नेता की है और वह पार्टी की गुटीय राजनीति से भी परे रहते हैं, इसलिए उनके चुनाव में हरीश रावत से हरक सिंह रावत तक और यशपाल आर्य से करण मेहरा जैसे पार्टी के सभी प्रांतीय नेताओं के मनोयोग से जुट जाने की उम्मीद है। अब सबको दोनों के पत्ते खुलने के बाद चुनावी समरभूमि में रोचकता बढ़ेगी और अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा कि हवा किस ओर बह रही है।

Advertisement
Ad Ad Ad Ad Ad Ad
यह भी पढ़ें 👉  मुस्लिम पक्ष को झटका; ज्ञानवापी में पूजा रोकने से हाईकोर्ट का इन्कार

Comments

You cannot copy content of this page