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-उद्घाटन में उनका हाथ लगा था तो इनके लिए अछूत हो गया

हल्द्वानी: जनता की गाढ़ी कमाई से बना हल्द्वानी का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स स्टेडियम की हालत उस अनाथ बच्चे की तरह हो गई है जिसे गोद लेने की रस्म पर बड़े उत्सव हुए, खूब दावतें हुई, प्रचार और सराहना का ढोल भी खूब पीटा गया, लेकिन रस्म अदायगी के अगले ही दिन उसे फिर अनाथ छोड़ दिया गया। अधिकांश विकास परियोजनाओं का अधिकतर यही हश्र होता आया है और यह तब और भी दुर्भाग्य का शिकार हो जाती हैं, जब एक सरकार की निर्माणाधीन परियोजना के दौरान सत्ता परिवर्तन हो जाए। कहने की जरूरत नहीं कि नव सत्तासीनों का नजरिया उस विकास परियोजना के प्रति नकारात्मक और अस्पृश्यता भरा होता है।
बता दे कि वर्ष 2014 के नवंबर माह में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस स्टेडियम के लिए हैदराबाद की एक कंपनी एन.सी.सी. लिमिटेड को टेंडर के जरिए काम सौंपा था। अनुबंध पत्र के मुताबिक इस कंपनी को  30.20 हेक्टेयर भूमि पर 18 महीनों में स्टेडियम का निर्माण करना था। उस समय इस परियोजना के लिए 255 करोड़ रूपये आवंटित किए गए थे। परियोजना की नींव 9  नवंबर 2014 को उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने रखी थी। इसके बाद 18 दिसंबर  2016 को पूर्व मुख्यमंत्री के हाथों इस स्टेडियम काम्प्लेक्स के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट ग्राउंड का लोकार्पण हुआ। इस स्टेडियम में क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी के मैदान, बैडमिंटन और लॉन टेनिस कोर्ट, बॉक्सिंग रिंग और स्विमिंग पूल के साथ 800 मीटर रेस ट्रैक के साथ एक हेलीपैड भी प्रस्तावित हैं।
मौजूदा वक्त में 25000  (पच्चीस हजार ) दर्शकों की क्षमता वाले इस अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम की हालत एक पुरातन स्मारक सी हो गई है। मैदानों में उग आई लंबी घास, बारिश में टपकते भवन, दर्शक दीर्घा में उग आई खरपतवार और यहाँ-वहाँ टहलते सरीसर्प इसकी पहचान बन गए हैं। अब तक यहाँ हुई सभी प्रतिस्पर्धाएं निजी संस्थानों या खेल एसोसिएशन द्वारा आयोजित की गईं, जिन्हें राज्य या राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का नाम दिया जाता रहा है। पिछले आठ वर्षों से उत्तराखंड सरकार का खेल मंत्रालय इस स्टेडियम को लेकर दिलचस्पी दिखता नहीं नजर आया। आलम यह है कि स्टेडियम की सीमाओं पर बहती गौला नदी इसके वजूद को निगलने को आतुर है। भू कटाव के चलते स्टेडियम की सीमा से लगे पैदल मार्ग भी नदी ने लील लिए हैं, लेकिन नीति नियंता इसे लेकर संवेदनहीन बने हुए हैं। ऐसी बड़ी विकास परियोजनाओं को लेकर सरकारों का नजरिया क्या रहता है, इसकी एक बानगी सुरक्षा दीवार के निर्माण में ही देखिए। वर्ष 2014 -15 में स्टेडियम के लिए सिंचाई विभाग की तरफ से 700 मीटर की सुरक्षा दीवार का प्रस्ताव शासन को भेजा गया, जिसकी लागत तब 2 करोड़ 60 लाख थी। यह रकम आने में इतने वर्ष लग गए कि वर्ष 2024 आ पहुंचा, लेकिन कार्य को मंजूरी न मिल सकी। आखिर जब इस वर्ष 13 सितंबर 2024 को नदी ने स्टेडियम का एक बड़ा भू भाग निगल लिया तो इस बड़े नुकसान के बाद सिंचाई विभाग ने 17 सितंबर को ही नया प्रस्ताव बना कर शासन को भेज दिया, जिस पर पांच बार बैठक हो चुकी है पर नतीजा अब भी ढाक के तीन पात।
विकास परियोजनाओं से राजनीति का खेल इससे ही समझा जा सकता है कि स्टेडियम कांग्रेस शासन की देन था तो भाजपा के लिए अछूत हो गया। राजनीति के इस खेल में नुकसान अंततः जनता और उसके पैसे का ही होता आया है। इससे जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही का अंदाजा लगाया जा सकता है।

 

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