सख्ती दिखाई तो उत्तराखंड के कई नौकरशाहों के बदलेंगे दायित्व
संजय झा
देहरादून। बामुश्किल डेढ़ माह के कार्यकाल के बाद ही शैलेश बगोली को गृह सचिव के पद से हटाना पड़ा है। सवाल यही खत्म नहीं हो जाता है। खास बात यह है कि चुनाव आयोग के पास उत्तराखंड के एक एक अधिकारी की कुंडली है। ऐसे में यदि आयोग सख्त हुआ तो प्रदेश के कई अफसरों को अपने मौजूदा पद से रूखसत होना पड़ सकता है। चुनाव आयोग ने छह राज्यों के गृह सचिव को हटाने का आदेश जारी करने के पीछे तीन कारण माने जाते है। इसमें भ्रष्टाचार के आरोप, मुख्यमंत्री सचिवालय से जुड़ा होना और गृह जनपद में तैनाती शामिल है। शैलेश बगोली की बात करें तो वह धामी 2.0 सरकार में शुरू से ही मुख्यमंत्री के सचिव की भूमिका में रहे है। गृह सचिव का पद उन्हें फरवरी में तब मिला जब राधा रतूड़ी को मुख्य सचिव की कुर्सी मिली। यानी डेढ़ महीने से कम के कार्यकाल में ही उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा। सूत्रों की मानें तो चुनाव आयोग में मौजूद दो में से एक आयुक्त एसएस संधू उत्तराखंड कैडर के आईएएस रहें है। वर्ष 2021 से जनवरी 2024 तक वह प्रदेश के मुख्य सचिव रहें। वह धामी 1.0 और 2.0 दोनों सरकार में मुख्य सचिव की भूमिका में रहें है। लंबे समय तक उत्तराखंड में सेवा देने और दो साल से अधिक समय तक मुख्य सचिव रहने के कारण उन्हें उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी की एक-एक कहानी का पता है। वह जानते है कि मुख्यमंत्री धामी की कोर टीम में कौन-कौन से अफसर तैनात है। कहा जाता है कि शैलेश बगोली और मुख्यमंत्री धामी की निकटता की जानकारी होने के कारण ही चुनाव आयोग ने यह शर्त रखी कि मुख्यमंत्री के सचिव पद पर यदि कोई अफसर है तो उसे गृह सचिव नहीं बनाया जा सकता। इसके पीछे चुनाव आयुक्त एसएस संधू का दिमाग बताया जा रहा है। यदि इस चर्चा में दम है तो मौजूदा डीजीपी अभिनव कुमार भी लपेटे में आ सकते है। क्योंकि कांग्रेस ने बाकायदा चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अभिनव कुमार को मुख्यमंत्री का करीबी होने का आरोप लगाया है और उन्हें पद से हटाने की मांग की है। चुनाव आयुक्त संधू जानते हैं कि अभिनव कुमार को कई वरिष्ट अफसरों को दरकिनार कर डीजीपी बनाया गया है। इतना ही नहीें नौकरशाही के विरोध के बावजूद अभिनव को सीएम ने अपना विशेष प्रमुख सचिव बनाया। जिस समय संधू मुख्य सचिव थे उस समय अभिनव कुमार की शासन में बड़ी हनक थी। ऐसे में आशंका जतायी जा रही है कि कांग्रेस के आरोपों के आधार पर अभिनव को कुछ समय के लिए डीजीपी की कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है।
सेमवाल को भी करना पड़ेगा इंतजार
सिर्फ अभिनव ही नहीं बीमारी से निजात मिलने के बाद डयूटी ज्वाइन करने वाले एक और सचिव हरिश्चंद्र सेमवाल को भी अहम पद के लिए इंतजार करना पड़ सकता है। सेमवाल भी मुख्यमंत्री के करीबी माने जाते है और बीमारी से पहले उन पर आबकारी आयुक्त समेत कई महत्वपूर्ण विभागों के सचिव का पद था। आचार संहिता लागू रहने तक यदि सेमवाल को कोई पद दिया जाता है तो इसके लिए चुनाव आयोग की मंजूरी लेनी होगी। यहां भी संधू की भूमिका अहम होगी।