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हल्द्वानी: जब भी हम चिकित्सालयों की बात करते हैं तो आमतौर पर उनकी सफाई, व्यवस्था, और स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में सोचते हैं। लेकिन, हल्द्वानी के सोबन सिंह बेस चिकित्सालय का दौरा करते समय अगर आप भीतर के अंधेरे को देखेंगे, तो जो हालात सामने आएंगे, वे निश्चित रूप से चौंकाने वाले होंगे।

यहां के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए आवंटित दस आवास, जो जर्जर हो चुके हैं, किसी भी कर्मचारी के रहने के लायक नहीं हैं। इनमें से एक आवास में मात्र एक सफाई नायिका जीवन जी रही है, जो अपने हालात में न तो आरामदायक स्थिति पा रही है और न ही अपनी मेहनत के लिए उचित सम्मान।

यह टाइप 1 श्रेणी के छोटे कमरे थे जो कभी वार्ड बॉयज के लिए बनाए गए थे। इनकी तनख्वाह इतनी कम है कि वे खुद इन आवासों की मरम्मत नहीं करवा सकते थे। जब इस मुद्दे को प्रमुख अधीक्षक और ट्रेजरी अधिकारी ने देखा, तो एक कमेटी बनाकर कर्मचारियों से खुद पैसे लगवाने का निर्णय लिया। कुछ कर्मचारियों ने अपनी मेहनत से इन आवासों का जीर्णोद्धार कराया, तो कुछ ने अन्य रकम से।

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लेकिन, यह तो और हैरान करने वाली बात है कि अस्पताल के उच्च अधिकारियों को ही यह तक नहीं पता कि इन आवासों का हिसाब-किताब क्या है और इन्हें कब, किसे आवंटित किया गया था। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि जिन कर्मचारियों को ये आवास दिए गए थे, उनमें से कई अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

अधिकारियों ने शायद भूला ही दिया कि इनके लिए शासन से कई बार प्रस्ताव भेजे गए थे, लेकिन वह प्रस्ताव कभी मंज़ूर नहीं हुए। जबकि, चिकित्सालय के तीन मुख्य द्वार, जिनकी लागत लाखों रुपये आई, उनकी मरम्मत या निर्माण में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आई। इन मुख्य द्वारों (दरवाजों) के निर्माण के लिए खनन न्यास समिति के फंड से धन खर्च किया गया, जबकि इस राशि को कर्मचारियों के आवासों की स्थिति सुधारने में लगाया जा सकता था।

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इससे एक सवाल उठता है, क्या बाहर की चमक दमक अधिक महत्वपूर्ण है या अस्पताल के कर्मचारियों के हालात बेहतर करना? शासन और प्रशासनिक अधिकारियों की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए—आवश्यकताओं और दयनीय स्थिति में जी रहे कर्मचारियों को सुधारने की या फिर सिर्फ बाहरी दिखावे पर खर्च करने की?

अस्पताल में सफाई व्यवस्था पर सीएमएस का सफाई से पल्ला झाड़ना, ठेकेदार व्यवस्था को ठहराया जिम्मेदार

इस पूरे मामले में जब हमने सोबन सिंह बेस अस्पताल के सीएमएस के के पांडेय से बात की तो उन्होंने पूरे मामले से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह मामला उनके संज्ञान में नहीं है। वैसे भी अस्पताल में सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी ठेकेदार प्रथा के तहत संचालित की जाती है।

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