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संजय रावत

उत्तराखंड के व्यवसायिक शहर हल्द्वानी में एक प्रतिष्ठित अस्पताल के ‘गणमान्य’ डॉक्टर की रंगरलियों के क़िस्से आजकल चर्चा में हैं। एक फेसबुक पोस्ट से फैली ये कहानी पलक झपकते ही हर गली-नुक्कड़ में कही-सुनी जाने लगी, लेकिन जिसे फ़साना बना दिया गया उस बात की तह में कड़वा सच सुलग रहा है।

पलायन उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों की सच्चाई है। ये पलायन भी दो तरह का है पहला कि लोग दिल्ली जैसे महानगरों में चले जा रहे हैं,दूसरा कि वे पर्वतीय क्षेत्र से उत्तराखण्ड के ही मैदानी कस्बों में चले जाते हैं। इस वजह से ये कस्बे शहर से महानगर में तब्दील होते जा रहे हैं। इन कस्बों शहरों में पहाड़ से चले आ रहे युवाओं के सपनों की तिजारत होती है। चटखारे लेकर सुनी-कही जा रही कहानी की तह में भी यही सपनों का व्यापार छिपा है। हम इस मसले को सिर्फ कंजे-क़िस्से की तरह नहीं लेते बल्कि अंकिता भंडारी मामले की ही एक कड़ी के रूप में देखते हैं।

हमने इस मसले की गंभीरता से पड़ताल की है जो अभी जारी है। अब तक की जाँच-पड़ताल को समझते हैं। हल्द्वानी शहर जो कभी मामूली क़स्बा हुआ करता था, इसके एक डॉक्टर हैं जो कभी मामूली से हुआ करते होंगे लेकिन आज प्रदेश भर में लोकप्रिय बड़े अस्पताल के मालिक हैं। पैसा है, रसूख है, बाल-बच्चों से भरा पूरा घर है और अकूत संपत्ति है, नहीं है तो बस चैन। डॉक्टर साहब को शराब से ज्यादा शबाब का शौक है। अपने अस्पताल के स्टाफ से लेकर मरीजों तक को ये अपने जाल में फंसाने से नहीं चूकते।

अब तक की पड़ताल में हमने पाया कि गंभीर रोगों का इलाज करने वाले ये डॉक्टर ख़ुद लाइलाज बीमारी का शिकार हैं। ये नित-प्रति रोजगार की तलाश में पहाड़ से उतर आए युवाओं से लेकर अपने स्टाफ और मरीजों तक को फंसाने की फिराक में रहा करते हैं। इनके शिकारों में अविवाहित युवा लड़कियों से लेकर शादीशुदा महिलाएं तक शामिल हैं। जैसे मकड़ी अपने शिकार को फंसाने के लिए एक महीन और लगभग अदृश्य जाल बुनती है, कुछ ऐसा ही जाल बुनने में ये माहिर हैं। लेकिन इस दफा इनका ये जाल कारगर साबित नहीं हुआ।

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अब हम आते हैं हालिया मसले पर। इस दफा उत्तराखण्ड के छोटे कस्बे की एक लड़की जो कि राज्य के ही बड़े शहर में सरकारी नौकरी पर है, वह डॉक्टर से गर्भवती हो गयी। इतना ही नहीं गंभीर हालत के चलते उसने अबॉर्शन कराने से साफ़ इनकार कर दिया। यहाँ एक चीज गौरतलब है कि ये डॉक्टर अपनी सभी शिकारों से सच्चा प्यार करने की बात करते हैं, मतलब मामला सिर्फ आपसी सहमति से कार्य-व्यापार करने भर का नहीं होता।

खैर जब यह लड़की गर्भवती हो गयी तब इसकी परिचित लड़कियों तक भी यह बात पहुँची। इनमें इसे कुछ अन्य से भी डाकसाब सच्चा प्यार करते थे, इन्हीं में से एक लड़की जिसे ये डॉक्टर अपने जाल में फंसाने की लम्बे समय से कोशिश कर रहे थे ने मामले का सोशल मीडिया पर खुलासा कर दिया।

इस समय तक वह गर्भवती लड़की एक बच्चे की माँ बन चुकी थी। उस लड़की पर अबॉर्शन कराने का कितना दबाव रहा होगा। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि उसे अपने बच्चे को जन्म देने के लिए उत्तर प्रदेश के एक बड़े शहर में जाना पड़ा। जब एक साहसी लड़की ने मामला सोशल मीडिया पर डाल दिया तो ख़बर उतनी ही तेजी से फैली जितनी तेजी से आज उत्तराखण्ड के जंगलों में आग। विभिन्न दबावों में उस लड़की ने जब तक सोशल मीडिया से यह पोस्ट हटाई, तब तक कई लोग इसे अपने मोबाइल में सुरक्षित कर चुके थे। लिहाजा पोस्ट शेयर होती रही और लगभग पूरा हल्द्वानी शहर इस व्यभिचारी डॉक्टर की करतूतों से वाकिफ़ हो चुका था।

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इस डॉक्टर के पक्ष में पीड़ितों को धमकाने में गणमान्य लोगों से लेकर पुलिस के आला अधिकारी तक शामिल हैं। यहाँ इस बात को जान लेना जरूरी है कि डॉक्टर के बच्चे को जन्म देने वाली लड़की ने न तो सोशल मीडिया पर इस बारे में कुछ कहा है न ही कहीं कोई शिकायत दर्ज कराई है।
कोई कह सकता है कि यह आपसी सहमति से सम्बन्ध बनाने का मामला है। ऐसा है भी, लेकिन ये तब लगभग अपराध हो जाता है जब पीड़ित लगभग आपके बच्चे की उम्र का हो और उसे आपने सच्चा प्यार करने का झांसा दिया हो। हमारे संज्ञान में अब तक इस डॉक्टर की शिकार आधा दर्जन महिलाओं के मामले आ चुके हैं। इनमें से ज्यादातर अविवाहित हैं,एकाध विवाहित भी। जाहिर है हम उनके बारे में यहाँ चर्चा नहीं करना चाहते, वह इस पोस्ट का विषय है भी नहीं।

ये डॉक्टर लम्बे समय से अपने मरीजों, कामगारों और रोजगार की तलाश में हल्द्वानी का रुख करने वाली भोली-भाली लड़कियों को अपने जाल में फंसाते रहे हैं। अपने कुकृत्यों को अंजाम देने के लिए इन्होंने बाकायदा डहरिया में मिनी फ़ार्महाउस तक बना रखा है। इस मसले को अंकिता भण्डारी हत्याकांड की कड़ी के रूप में ही देखा जाना चाहिए।

फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ किसी पीड़िता की हत्या नहीं हुई है। बाकि, लड़कियों की अस्मिता से खिलवाड़, मामले दबाने के लिए उन पर रसूखदार लोगों का दबाव आदि इस कहानी का भी हिस्सा है। बहरहाल, हमारी तफ्तीश अभी जारी है। यह भी हमारी चिंता का विषय है कि पैदा हो चुके बच्चे और उसकी बिनब्याही माँ का आगे का जीवन कैसा होगा। कहीं किसी और बच्चे को रोहित शेखर की तरह का कठिन और त्रासदपूर्ण जीवन न जीना पड़े !

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