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राजनीतिक दलों के साथ ही जनता में भी नहीं दिख रहा उत्साह

राजेश सरकार

हल्द्वानी: लोकतंत्र का महापर्व चुनाव एक बार फिर सामने है। मीडिया में राजनैतिक पार्टियों के भारी भरकम दावों का शोर साफ सुनाई दे रहा है। कोई पार्टी इस बार चुनाव में चार सौ पार के दावे का ढोल पीटती नजर आ रहीं है, तो वही दूसरी तरफ अन्य पार्टियां महागठबन्धन के तहत एकजुट होने का दम भरते हुए मौजूदा केंद्र सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकने के दावे कर रही है। बहरहाल संतापक्ष और विपक्ष के इन दावों में कितना दम है इसका पता तो 4 जून को चुनाव परिणाम आने के बाद ही चलेगा। लेकिन इन सब से इतर आम मतदाता है कि वह इस बार एक कोने पर खड़ा डरा-सहमा सा नजर आ रहा है। उसके चेहरे पर इस चुनावी शोर में एक गहरी खामोशी साफ दिखायी दे रहीं है। कही मतदाता की यह गहरी खामोशी आने वाले तूफान का इशारा तो नहीं? जो अपने प्रचन्ड वेग में सब कुछ तहस-नहस करने की ताकत रखती है। बहरहाल इस चुनावी घमासान का परिणाम चाहे जो भी रहें पर मौजूदा समय में मीडिया के भीतर राजनैतिक पार्टियों के बीच जो वाक युद्ध चल रहा है उसे किसी रणक्षेत्र से कम नहीं आंका जा सकता है। सतारूण पार्टी भाजपा जहां चुनाव प्रचार में इस बार 400 पार का डंका मीडिया व रोड़ शो में पीटते नजर आ रहीं है यह अलग बात है कि आम मतदाता उनके इन दावों से कितना इत्तफाक रखता है। क्योंकि सत्ता की सीढ़िया कौन चढ़ेगा यह तो जनता ही तय करेगी ना कि राजनीतिक दलों के दावों का शोर। जनता जनार्दन की चौखट पर पार्टियों के दावों को कार्यरूपी कसौटी पर परखा जाता है। और वही से शुरू होता है जनप्रतिनिधियों के सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने व उतरने का सफर। क्योंकि, ये जो पब्लिक है न, ये सब जानती है।

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