हल्द्वानी: जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक उपलब्धियों में नहीं बल्कि आत्मिक उन्नति में निहित है। यह उद्घोषण निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने महाराष्ट्र के 58वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के तीसरे एवं समापन दिवस पर लाखों की संख्या में उपस्थित मानव परिवार को संबोधित करते हुए व्यक्त किया। इस तीन दिवसीय समागम का कल रात विधिवत रूप से सफलतापूर्वक समापन हुआ।
आध्यात्मिक उन्नति की आवश्यकता
सतगुरु माता जी ने आगे कहा कि मनुष्य जीवन को इस कारण ऊँचा माना गया है क्योंकि इसमें आत्मज्ञान प्राप्त करने की क्षमता है। परमात्मा निराकार है, और इस परम सत्य को जानना मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए।
जीवन का सही मार्ग
सतगुरु माता जी ने जीवन को एक वरदान मानते हुए कहा कि इसे परमात्मा के साथ हर पल जुड़कर जीना चाहिए। जीवन के हर पल को सही दिशा में जीने से ही हमें आत्मिक संतोष और शांति मिल सकती है, जिससे हम असीम की ओर बढ़ सकते हैं।
भक्ति और कर्तव्यों का संतुलन
समागम के दूसरे दिन, सतगुरु माता जी ने भक्ति के साथ कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहने का आह्वान किया। उन्होंने उदाहरण के द्वारा समझाया कि जैसे एक पक्षी को उड़ने के लिए दोनों पंखों की आवश्यकता होती है, वैसे ही जीवन में भक्ति के साथ साथ अपनी सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाना भी जरूरी है।
संतों का जीवन और आस्था
निरंकारी राजपिता रमित जी ने भक्ति का उद्देश्य परमात्मा के साथ प्रेमपूर्ण नाता जोड़ने का बताया। उन्होंने संतों के जीवन को प्रेरणास्रोत मानते हुए कहा कि हमें अपनी आस्था और श्रद्धा को सच्चाई की ओर मोड़कर हर पल परमात्मा के प्रेम का अहसास करना चाहिए।
समागम की प्रमुख गतिविधियां
कवि दरबार: समागम के तीसरे दिन एक बहुभाषी कवि दरबार का आयोजन किया गया, जिसमें 21 कवियों ने विभिन्न भाषाओं में काव्य पाठ किया।
निरंकारी प्रदर्शनी: समागम के मुख्य विषय ‘विस्तार – असीम की ओर’ पर आधारित एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसमें मिशन के इतिहास, विचारधारा और समाज सेवा गतिविधियों को प्रदर्शित किया गया।
स्वास्थ्य शिविर: समागम में काईरोप्रैक्टिक तकनीक द्वारा निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने लाभ लिया।
निःशुल्क डिस्पेंसरियां: समागम स्थल पर तीन स्थानों पर होम्योपैथी डिस्पेंसरियां और एक 60 बिस्तर का अस्पताल स्थापित किया गया।
लंगर: समागम में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए 24 घंटे निःशुल्क लंगर की व्यवस्था की गई थी।
इस समागम ने भक्ति, सेवा और समाज कल्याण के महत्व को फिर से उजागर किया और श्रद्धालुओं को जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।