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नेपाल की सत्ता बदली, लेकिन हल्द्वानी से पहले ही बज चुकी थी चेतावनी की घंटी

हल्द्वानी: नेपाल में तख्तापलट हो गया। सत्ता बदल गई, प्रधानमंत्री केपी ओली का राजनीतिक ताश का महल ढह गया। लेकिन असली सवाल यह नहीं है कि सत्ता गई असली सवाल यह है कि जब पूरी दुनिया चुप थी, तब एक पूर्व कमांडो ने इसकी भविष्यवाणी कैसे कर दी?
जी हां, हम बात कर रहे हैं लक्ष्मण सिंह बिष्ट उर्फ लक्की कमांडो की एक ऐसा नाम जो न तो किसी अखबार की सुर्खियों में रहता है, न ही किसी टीवी डिबेट का हिस्सा है। लेकिन जिसने आठ महीने पहले ही उस तूफान की आहट सुन ली थी, जो अब नेपाल की राजनीतिक जमीन को उधेड़ चुका है।
यह कोई खुफिया एजेंसी की प्रेस रिलीज नहीं थी। यह कोई स्टूडियो में लिखा गया स्क्रिप्ट नहीं था। यह था जमीनी अनुभव, नेटवर्क, और सिस्टम की नब्ज़ को पहचानने वाला एक सजग मस्तिष्क जो कह रहा था, नेपाल में सत्ता पलटेगी, हलचल शुरू हो चुकी है।
24 दिसंबर 2024 जिस दिन नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अचानक कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई। उसी दिन लक्की कमांडो ने एक चैनल को दिए इंटरव्यू में यह कहा था। अब, जब काठमांडू की सत्ता हिल चुकी है, अपराधी जेलों से भाग चुके हैं, और सीमा पर खतरे की आहट है तब वो वीडियो वायरल हो रहा है, लेकिन क्या हमने उससे कुछ सीखा?
लक्की कमांडो कोई भविष्यवक्ता नहीं हैं। वे राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के पूर्व सर्वश्रेष्ठ कमांडो हैं, जिन्होंने इस्राइल से लेकर भारत की वीवीआईपी सुरक्षा तक, हर स्तर पर काम किया। तीन साल की जेल, 11 जेलें, दो गैंगस्टरों की हत्या का आरोप, लेकिन अंत में अदालत से क्लीन चिट।
लक्की कमांडो ने साफ चेताया नेपाल की जेलों से जो अपराधी भागे हैं, उनमें आतंकी भी हैं और संगठित अपराधी भी। घुसपैठ की आशंका ज़रूर है। सतर्क रहना होगा। लेकिन क्या दिल्ली सुन रही है? या फिर वही पुराना तरीका जब मामला हाथ से निकल जाता है, तभी सरकार की नींद खुलती है?
नेपाल की सत्ता परिवर्तन को कुछ लोग सोशल मीडिया क्रांति कह रहे हैं। लेकिन लक्की कमांडो इस नरेटिव को सिरे से खारिज करते हैं। वे कहते हैं सोशल मीडिया सिर्फ बहाना है। असली कहानी तीन परतों में छिपी है भ्रष्टाचार, चीन का दखल, और सुपरपावर देशों की बैकडोर पॉलिटिक्स।
तो ये वही राजनीति है, जहां लोकतंत्र की चूड़ियाँ रेड कारपेट पर खनकती हैं और बैकडोर से सत्ता की चाभियाँ ट्रांसफर होती हैं। जनता को सिर्फ झंडे पकड़ाए जाते हैं, असली फैसला कहीं और होता है।
नेपाली राजनीतिक तूफान से उठती हवाएं अब भारतीय सीमाओं की ओर बढ़ रही हैं। सवाल ये है कि क्या हमारी सरकार, हमारी खुफिया एजेंसियां, और हम सब तैयार हैं?
या फिर हमें एक और लक्की कमांडो की चेतावनी का इंतज़ार रहेगा, ताकि जब सब खत्म हो जाए, हम फिर से कह सकें अरे! उसने तो पहले ही कह दिया था..

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