उत्तराखंड का यशवंत परमार बन सकता है फौजी का बेटा
- राजेश सरकार
देहरादून। अपने कड़क फैसलों से चर्चा में रहने वाले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी केदार का रण जितने के बाद उत्साह से लबरेज है। फौजी पिता से मिली अनुशासन व कर्मठता की सीख उन्हें हर मुश्किलात से पार पाने का ज़ज्बा दे रहे है। हाल ही में केदारनाथ उपचुनाव के गहमागहमी के माहौल के बीच उन्होंने कई बार गैरसैण का रुख किया। इस दौरान वे जहाँ गैरसैण की कड़कती ठण्ड में मॉर्निंग वॉक के दौरान गैरसैण को गम्भीरता से निहारते नजर आये, मानो गैरसैण को लेकर कोई गम्भीर मंथन उनके जेहन में चल रहा हो। यदि ऐसा है तो माना जाना चाहिए कि वे उत्तराखण्ड को गैरसैण के रूप में स्थायी राजधानी मुहैया कराने को लेकर संजीदा है, यदि यह सही मायने में सच साबित हुआ तो धामी उत्तराखंड के यशवंत सिंह परमार साबित होंगे।
बता दे कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हालिया दिनों में धर्मांतरण कानून, यूसीसी व लव जिहाद / लैंड जिहाद व नकल विरोधी कानून लाकर अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया। धामी के इन कड़े फैसलों के बाद लोगों की उम्मीदें युवा मुख्यमंत्री से और बड़ गई है। प्रदेश की जनता को लग रहा है कि धामी ही वह मुख्यमंत्री है जो प्रदेश को गैरसैण के रुप में स्थायी राजधानी दे सकते है।
मुख्यमंत्री धामी ने गैरसैण के रूप में यदि उत्तराखंड को स्थाई राजधानी उपलब्ध करा दी तो वे न केवल राज्य की जनता के सुपर हीरो होंगे बल्कि वे हिमाचल के जनक यशवंत सिंह परमार की तरह आजीवन राज्य के लोगों के दिलों दिमाग में रचे बसे रहेंगे। पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमन्त्री बनने के बाद जिस तेजी से सख्त निर्णय लिए है उसने जनता की उम्मीदों को नए पंख देने का कार्य किया है। मुख्यमंत्री के फैसलों में उत्तराखंड देश में यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है और अब उत्तराखंड की पहल का अन्य राज्य भी अनुशरण कर रहे है। जानकारों का मानना है कि यदि मुख्यमंत्री धामी प्रदेश को स्थायी राजधानी मुहैया कराते है तो उन्हें न तो किसी पार्टी और न ही किसी पार्टी वरदहस्त की जरूरत होगी, क्योंकि इसके बाद जनता रूपी वरदहस्त धामी के साथ होगा जो एक मजबूत चट्टान की मानिंद हमेशा उनके साथ खड़ी होगी। कुल मिलाकर यदि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चाहे तो वे गैरसैण को स्थायी राजधानी घोषित कर अपना पराक्रम दिखा सकते है। मौजूदा समय भी उनसे इसकी मांग कर रहा है। क्योंकि अभी मौका भी है और दस्तूर भी, यदि धामी आज इस पर फैसला लेने से चूकते है तो उन्हें राज्य का यशवंत परमार बनने का सुनहरा मौका शायद वक़्त फिर न दे। इस लिए उन्हें याद रखना होगा कि “अभी नहीं तो फिर कभी नहीं” वालीं कहावत को चरितार्थ होने में ज्यादा समय नहीं लगता।