ख़बर शेयर करें -

ऊर्जा मंत्री होने के नाते सीएम भी सवालों के कठघरे में

संजय रावत

देहरादून। उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) के एमडी अनिल यादव को सेवा विस्तार का मामला सरकार और मुख्यमंत्री के गले फंस गया है। मुख्यमंत्री के गले इसलिए कि ऊर्जा मंत्रालय वह खुद संभाल रहे हैं और यह संभव ही नहीं कि इतने बड़े पद पर किसी अधिकारी को सेवा विस्तार फाइल पर उनके हस्ताक्षरों के बगैर मिल गया हो। लेकिन इस मामले में पूरी सरकार की चुप्पी बता रही है कि सरकार अपने इस फैसले को उचित मानती है। अनिल यादव अपने नियमित सेवाकाल के दौरान से ही विवादास्पद अधिकारी रहे हैं। उनके विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति के मामले में जांच लंबित चल रही है। इसके बावजूद उन्हें एकाधिक बार सेवा विस्तार दिया जा चुका है। अबकी बार तो उन्हें दो साल का सेवा विस्तार दे दिया गया।
संभवतः यह मामला इतना तूल नहीं पकड़ता, अगर बीती सात नवंबर को राज्य सचिवालय में ऊर्जा सचिव मीनाक्षी सुंदरम के कक्ष में उनके और बेरोजगार संघ के प्रदेश अध्यक्ष बॉबी पवार के बीच इस मुद्दे को लेकर बहस नहीं हुई होती। बहस के बाद ऊर्जा सचिव ने बॉबी पवार के विरुद्ध जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाते हुए पुलिस में एफआईआर दर्ज करवा दी। इस मामले में पुलिस जांच के निष्कर्ष चाहे जो भी हो, लेकिन मौके पर मौजूद अन्य प्रत्यक्षदर्शियों ने घटना के बाद तफ़तीश से पूरे घटनाक्रम का सोशल मीडिया पर खुलासा किया है और इस बात का दृढ़ता से खंडन किया है कि उस समय जान से मारने की धमकी देने या फिर किसी को टेंडर दिलवाने जैसी कोई बात हुई थी। दोनों के बीच अनिल यादव के सेवा विस्तार को लेकर गर्मागर्म बहस होने की बात जरूर सबने कबूली है। इस घटनाक्रम के बाद आईएएस एसोसिएशन और सचिवालय कर्मचारी संघ बॉबी पवार पर कार्रवाई की मांग को लेकर मीनाक्षी सुंदरम के पक्ष में उतर आए। अधिकारी-कर्मचारियों की इस लामबंदी की स्वाभाविक प्रतिक्रिया हुई और आम लोग सोशल मीडिया पर प्रदेश सरकार को कोसते हुए बॉबी पवार के समर्थन में उतर आए। जब बात उठी तो उसका दूर तक जाना स्वाभाविक था। लोगों की चर्चा में अब यह मामला एक नेता और आईएएस के बीच विवाद से ऊपर उठकर प्रदेश में इस तरह के अधिकारियों को दिए जा रहे संरक्षण पर केंद्रित हो गया। यहाँ सवाल उठने लगा है कि आखिर क्या वजह है कि भ्रष्टाचार को लेकर जोर-शोर से जीरो टालरेंस का दावा करने वाली सरकार में ऐसे अधिकारी को सेवा विस्तार दिया जा रहा है। वह भी उस मंत्रालय में, जो खुद सीधे मुख्यमंत्री के नियंत्रण में है। लोगों के बीच यह मुद्दा राजधानी के गलियारों से अब गांव-देहात की चौक-चौपाल की बहसों तक पहुंच गया है। कहने की जरूरत नहीं कि इन बहसों में ऐसे फैसलों के लिए सरकार को खरी-खोटी ही सुनाई जा रही है। इतने बड़े घटनाक्रम के बाद इस प्रकरण में न तो सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया आई और न ही सत्तारूढ़ दल की ओर से। मामला उसके गले की हड्डी बन गया है। सरकार की दुविधा यह है कि आखिर वह इस मुद्दे पर सफाई दे तो क्या दे। गेंद अब सरकार और मुख्यमंत्री के पाले में है। अगर मुख्यमंत्री वक्त रहते इस मुद्दे पर सरकार की स्थिति साफ नहीं करते तो जनता में यह छवि दृढ़ होती जाएगी कि सरकार न केवल इस प्रकार के अधिकारियों के प्रति आंख मूंदे बैठी है, बल्कि आगे बढ़कर उन्हें संरक्षण भी प्रदान कर रही है।  
 

Advertisement
Ad Ad Ad Ad Ad Ad
यह भी पढ़ें 👉  लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार, 55 में है 7 दागदार

Comments

You cannot copy content of this page