सतरह वर्ष के नत्थू को वोट देने की धुन सवार हो गई। सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम रूपी जोत को देखने से यह भाव और भी भरता गया। ‘भैया मैं तो वोट खिलौना लैहों।’ भैया टोकरी प्रसाद ने चेताया- ‘देख नत्थू तेरा नाम वोटर लिस्ट में नहीं है, इसलिए तू वोटिंग नहीं कर सकता।’ नत्थू ने कहा- ‘मेरा नाम न सही, मेरे भाई सत्तू का नाम तो मतदाता सूची में है ना! वह कमाने बाहर गया हुआ है। मतदान के दिन वह इतनी दूर से आएगा भी नहीं। उसकी जगह मैं वोट दूंगा। सोचने की बात है, भाई की जगह भाई ही वोट नहीं देगा तो कोन देगा?
टोकरी प्रसाद ने फिर समझाया-‘देख ले, तू खुद की रिस्क पर ही वोट दे सकता है। पकड़ में आ गया तो सीधी जेल है। खतरनाक यह खेल है। फिर पार्टी के वोटों की गिनती बढ़ाने में तेरा भी मेल है। बस तू मतदान कक्ष में अपने आपको सत्तू बताना। भूल जाना कि तू नत्थू है। समझ लेना मर गया नत्थू। पहचान पत्र सत्तू का, चाल-ढाल सत्तू की ही रखना, भले ही खाल नत्थू की हो, पर खाल के ऊपर का खोला सत्तू का रखना। आखिर नत्थू कुछ आश्वस्त हुआ। टोकरी प्रसाद ने नत्थू के कान में कहा- हम सभी पार्टियों के एजेंटों ने गठबंधन कर लिया है। जब चोटी पर गठबंधन हो सकता है तो तलहटी पर क्यों नहीं? पांच-पांच वोट हम सभी उन मतदाताओं के एवज में दिलाएंगे जिनके नाम मतदाता सूची में है, पर मतदान के दिन आने की संभावना नहीं है। इसलिए नत्थू मंत्र तो हम पढ़ लेंगे पर मतदान कक्ष की बांबी में तो हाथ तो तुम्हें ही डालना पड़ेगा। वैसे बांबी में बैठे सर्प देवता डसने की रिस्क इतनी आसानी से नहीं लेते, अनदेखा करते रहते हैं, ताकि जैसे-तैसे बस यह समय निकल जाए। इसलिए तू चिंता मत कर।’ आखिरकार मतदान का दिन भी आ पहुंचा। नत्थू बूथ पर झटपट गया। जाकर लाइन में डट गया। मतदाताओं का विशाल मेला था। चुनावी खेला था।
पीठासीन जी कह रहे थे-मतदान प्रक्रिया जल्दी-जल्दी चलने दो। नत्थू ने प्रथम मतदान आधिकारी को अपने विवरण की पर्ची सौंपी। प्रथमजी ने जोर से नाम पूकारा-सत्तू सिंह….। नत्थू का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। आंख दाहिनी फड़क रही थी। पहचान पत्र को सरसरी नजर से देखा। फिर गौर से पीछे बैठे एजेंटों को परखा। टोकरी प्रसाद ने कहा-रोको मत चलने दो। नत्थू अंगुली में स्याही लगवाकर जल्दी से दूसरे, तीसरे और चौथे अधिकारी के सामने से रपट गुजर गया। मशीन का बटन दबाकर जल्दी से बाहर निकल गया और एक जगह बैठकर दिल की धड़कनों को काबू में करने लगा। शाम को नत्थू ने टोकरी प्रसाद को घर जाकर धन्यवाद ज्ञापित किया और हाथ जोड़कर कहा- तुम्हारा मंत्र पक्का था, इसीलिए बांबी में हाथ डालकर भी मैं सुरक्षित चला आया। टोकरी प्रसाद ने कहा-भइए! यह मंत्र तब तक ही काम करेगा जब तक मतदाता की पहचान के लिए अंगूठा या आंखों की पुतली से स्केन करने का सिस्टम नहीं बन जाता।
* केदार शर्मा निरही