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वाहन जब्ती पर चोलामण्डलम सहित वित्त कंपनियों की अब खैर नहीं

हल्द्वानी से एक ऐसी खबर, जो उन आम लोगों की नींदें उड़ाने वाली है, जिनकी गाड़ी तो सड़क पर नहीं, बल्कि फाइनेंस कंपनियों के यार्ड में धूल फांक रही है। और अब फाइनेंस कंपनियों की भी रात की नींद हराम हो गई है, क्योंकि हल्द्वानी के सम्भागीय परिवहन अधिकारी सुनील शर्मा ने ऐसा नोटिस भेजा है, जिसे पढ़कर चोलामण्डलम इन्वेस्टमेंट एंड फाइनेंस कंपनी लिमिटेड जैसे बड़े नामों के भी हाथ-पांव फूल गए हैं।
आरटीओ सुनील शर्मा ने यह सीधा सवाल पूछ लिया कि क्या गाड़ियाँ जब्त करने की प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय और भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों के मुताबिक की गई? कानून के हिसाब से ‘प्री-रीपोस्सेशन नोटिस’ दिया गया या नहीं? कोर्ट का आदेश है या सिर्फ दबंगई? थाने को सूचना दी थी या बस उठा ले गए गाड़ी?
नोटिस की मियाद खत्म हुई तो कंपनी के लोग आरटीओ के दरवाज़े पर पहुंच गए, 7 दिन का और वक्त चाहिए, साहब। लेकिन आरटीओ सुनील शर्मा इस बार किसी भी तरह की लीपापोती के मूड में नहीं थे। उन्होंने दो टूक कह दिया अब और मोहलत नहीं मिलेगी। और फिर क्या था? कंपनी को झुकना पड़ा, और जब्त किए गए वाहनों के दस्तावेज खुद आरटीओ कार्यालय में जमा करने पड़े।
अब विभाग दस्तावेजों की बारीकी से जांच कर रहा है। कौन-सी गाड़ी कब जब्त हुई, किसके नाम थी, किस नोटिस के तहत हुई, और किस थाने को खबर दी गई हर बात की परतें खोली जा रही हैं। पारदर्शिता बनी रहे, इसलिए गाड़ियों के असली मालिकों से भी संपर्क साधा जा रहा है।
यह सिर्फ चोलामण्डलम की बात नहीं है, आरटीओ ने बताया कि कुल 74 वाहन विभिन्न कंपनियों द्वारा कब्जे में लिए गए और उन्हें लुधियाना ट्रांसपोर्ट यार्ड, गुमटी लालकुआं में खड़ा किया गया था। 2 अगस्त को हुए निरीक्षण में जब इन वाहनों की पड़ताल की गई, तो एक बड़ा खुलासा हुआ। यार्ड संचालक से जब पूछा गया कि कोई कोर्ट का आदेश है? कोई वैध दस्तावेज? तो जवाब में आई चुप्पी से ही साफ हो गया कि ये मामला सिर्फ गाड़ियों का नहीं, बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों और निजी कंपनियों की मनमानी का है।
आरटीओ ने अब कंपनियों को साफ निर्देश दिए हैं तीन दिन के भीतर दस्तावेज दो, नहीं तो मुकदमा झेलो। और यह कोई हल्का-फुल्का मुकदमा नहीं होगा, बल्कि अवैधानिक जब्ती की सजा होगी जिसमें जवाबदेही से बचना मुश्किल होगा।
इस कार्रवाई के बाद न सिर्फ हल्द्वानी, बल्कि पूरे प्रदेश की वाहन फाइनेंस कंपनियों में खलबली मच गई है। अब उन्हें अदालत के फैसले और आरबीआई के नियम याद आ रहे हैं।
क्योंकि अब वो दौर नहीं रहा जब फाइनेंस कंपनियां चुपके से गाड़ियाँ उठा लेती थीं और लोग अदालतों के चक्कर काटते रहते थे। अब हल्द्वानी में सुनील शर्मा जैसे अफसर हैं, जो पूछते हैं ‘तुमने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पढ़े हैं या नहीं?
और जब अफसर सवाल करने लगते हैं, तो कंपनियों की मनमानी की गाड़ी ज्यादा दूर नहीं चलती।

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