विश्व प्रसिद्ध रामनगर के जिम कॉर्बेट क्षेत्र में 11 होटल और रिजॉर्ट मालिकों ने वन भूमि पर किया है अतिक्रमण
आरोपियों के खिलाफ साढ़े चार साल पहले दर्ज हुए थे मुकदमे, कार्रवाई तो दूर अब तक पुलिस की जांच नहीं हुई पूरी
अतिक्रमण के दौरान जिम्मेदार वन विभाग के अधिकारी सोए रहे कुंभकर्णी नींद, अब तक एफआईआर की जांच पूरी न होने पर उठ रहे सवाल, वन विभाग के अधिकारियों और पुलिस प्रशासन की भूमिका संदेह के दायरे में
गौरव पांडेय
हल्द्वानी। लैंड जिहाद के मुद्दे के बीच रामनगर वन प्रभाग में आरक्षित वन भूमि पर होटल और रिजॉर्ट मालिकों के कब्जे का मामला भी प्रासंगिक हो उठा है। राज्य भर में सरकारी या वन भूमि पर समुदाय विशेष द्वारा किए गए अतिक्रमण और कब्जों को तो हटाया जा रहा है। लेकिन रामनगर के विश्वप्रसिद्ध जिम कॉर्बेट क्षेत्र के आसपास आरक्षित वन भूमि पर प्रभावशाली और पूंजीपति होटल और रिजॉर्ट मालिकों के द्वारा किए गए कब्जों को अभी तक खाली नहीं कराया जा सका है। जबकि इन अतिक्रमणकारियों के खिलाफ विभाग ने पुलिस में मुकदमा भी दर्ज कराया है। साढ़े चार साल से अधिक बीत जाने के बाद भी इन मुकदमों में पुलिस की जांच चल रही है। अब तक इन प्रभावशाली अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए वन भूमि को मुक्त कराना तो दूर जांच तक पूरी नहीं हुुई है। इससे पुलिस प्रशासन के साथ ही वन विभाग की कार्यप्रणाली भी संदेह के दायरे में आ गई है।
विश्वप्रसिद्ध रामनगर के जिम कॉर्बेट क्षेत्र में एक-दो नहीं 11 रिजॉर्ट और होटल मालिकों ने आरक्षित वन क्षेत्र पर कब्जा किया है। इन प्रभावशाली और पूंजीपति रिजॉर्ट मालिकों ने सालों पहले ढिकुली के आरक्षित वन क्षेत्र में छलपूर्वक षडयंत्र रचकर आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण कर चोरी से कब्जा कर लिया था। कब्जा करने के साथ ही निर्माण भी किए गए। यहां बड़े पैमाने पर वन भूमि पर कब्जा करने के दौरान वन विभाग के जिम्मेदार आंखें मूंदे रहेे। लगातार शिकायतों के बाद जिम्मेदारों की नींद टूटी तो अतिक्रमणकारी रिजॉर्ट और होटल मालिकों के खिलाफ वर्ष 2018 के सितंबर माह में रामनगर कोतवाली में अलग-अलग आईपीसी की धारा 379, 420, 434, 447 और 120 बी के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई। अब एफआईआर दर्ज हुए साढ़े चार साल से अधिक वक्त बीत चुका है। लेकिन अतिक्रमणकारी रिजॉर्ट और होटल मालिकों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए आरक्षित वन भूमि से कब्जे खाली कराना तो दूर पुलिस की जांच तक पूरी नहीं हुई है। इस संवेदनशील प्रकरण में वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की चुप्पी और पुलिस की ढिलाई से उनकी नीयत को लेकर सवाल उठ रहे हैं। साथ ही जिम्मेदारों की भूमिका भी संदेह के दायरे में है। इसके इतर वन विभाग के आरक्षित वन क्षेत्रों में समुदाय विशेष के अस्थायी कब्जों को खाली करा कर वन विभाग के अधिकारी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। लेकिन बड़े पैमाने पर आरक्षित वन क्षेत्रों में प्रभावशाली और पूंजीपति रिजॉर्ट और होटल मालिकों के कब्जों को लेकर जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली कई सवाल उठा रही है। आखिर आरक्षित वन क्षेत्र में बड़े पैमानों पर हुए इन कब्जों के दौरान जिम्मेदार अधिकारी क्यों सोए रहे। और अब साढ़े चार से अधिक समय बीतने के बाद भी मुकदमों की जांच तक पूरी क्यों नहीं हुई।
इन रिजॉर्ट और होटल मालिकों ने किए हैं आरक्षित वन भूमि पर कब्जे
प्रबंधक एवं स्वामी हृदयेश होटल
प्रबंधक एवं स्वामी हृदयेश फार्म
प्रबंधक एवं स्वामी क्लब महेंद्रा
प्रबंधक एवं स्वामी सुखविंदर गौरया फार्म
प्रबंधक एवं स्वामी कॉर्बेट कॉल रिजॉर्ट
प्रबंधक द ताज रिजॉर्ट
प्रबंधक एवं स्वामी अशोक मार्गो फार्म हाउस
प्रबंधक एवं स्वामी हृदयेश फार्म
प्रबंधक एवं स्वामी मुकुंद प्रसाद सीआरवीआर
प्रबंधक एवं स्वामी अकबर अहमद डंपी कॉर्बेट रिवर व्यू
प्रबंधक एवं स्वामी भुवन मित्तल वुड कैसल
क्या कहते हैं पुलिस के जांच अधिकारी
आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण और कब्जों के इन मुकदमों की जांच रामनगर के कोतवाल अरुण सैनी कर रहे हैं। जांच अधिकारी का कहना है कि विवेचना फाइनल स्टेज में है। इस संबंध में सर्वे ऑफ इंडिया से सर्वे रिपोर्ट आनी है। इसके बाद आरोपियों की गिरफ्तारी के साथ ही आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया जाएगा।
क्या कहते हैं वन विभाग के अधिकारी
रामनगर वन प्रभाग के डीएफओ हिमांशु बाखड़ी का कहना है कि उन्होंने तीन दिन पहले ही इस पद पर चार्ज लिया है। इस मामले को संज्ञान में लेकर पूरे प्रकरण को देखा जाएगा और उनके स्तर से जरूरी कार्यवाही अमल में लाई जाएगी। इधर, इस मामले में कंजरवेटर कुमायूं से संपर्क नहीं हो सका। जबकि चीफ कंजरवेटर कुमायूं पीके पात्रो का कहना है कि अधीनस्थों से इस संबंध में रिपोर्ट तलब की जाएगी। अतिक्रमणकारियों के खिलाफ हर हाल में कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।